चिंता और चिता में बिंदी मात्र का अंतर है- पं. महेश भाई गुरूजी

देवास। चिंतन और चिंता का एक ही आशय होते हुए भी इनमे बहुत अंतर है। चिंतन का अर्थ होता है, विचार करना और चिंता का अर्थ होता है, विचारों में घुलना चिंतन में विचारों का प्रवाह होता है। जबकी चिंता में विचारों की उथल-पुथल मची रहती है। चिंतन में विचारों का भोझ नहीं होता, चिंता में विचारों का भोझ होता है। चिंतन में मस्तिक और मन स्वच्छ रहते हैे। जबकि चिंता में दु:ख से आचन रहते है। वस्तुत चिंतन से ज्ञान के द्वार खुलता है जबकि चिंता में अवरुद्ध हो जाते है। दिग्भर्मित होने पर प्राय: चिंता छा जाती है। चिंता एवं चिता में बिंदी मात्र का अंतर है, परंतु चिता तो मुर्दो को जलाती है, चिंता जीवित व्यक्ति को जलाती रहती है।
उक्त उद्गार राम रहीम नगर में चल रही श्रीमद भागवत कथा में पं. महेश भाई गुरूजी ने व्यक्त किये। कथा प्रसंग में आज श्रीराम एवं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। श्रीमद भागवत की आरती राष्ट्रीय कवि देवकृष्ण व्यास, सांसद प्रतिनिधि राजीव खंडेलवाल, अशोक जाट, गोवर्धनसिंह चंदेल, दिनेश मिश्रा, नवीन नाहर, पवन पटेल, हरीश वैष्णव ने की। आयोजक ठा. कमलसिंंह एवं कुं. राजेन्द्रसिंह ने बताया कि आज कथा प्रसंग में गोवर्धन पूजा व छप्पन भोग लगाया जाएगा।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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