मुंबई हमले में घायल हुए पति का डायपर आज तक बदलती हैं बेबी चौधरी, लाशों के बीच पागलों की तरह खोजती रहीं पति को

श्याम की हालत ऐसी है कि वह पिछले दो साल से ही अपने बच्चों को पहचान पा रहे हैं।
डार्लिंग कहकर बुलाने वाला अब इशारों में बातें करता है

यह पंक्ति किसी फिल्म की स्क्रिप्ट का दुखभरा डायलॉग नहीं है, बल्कि एक पत्नी के मुंह से निकला दर्द भरा सच है। श्याम वेस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर टैक्सी में हुए विस्फोट की चपेट में आ गए थे। उनके सिर, कंधे और हाथ में जबरदस्त चोट आई थी। कंधे की हडि्डयां दिखाई देने लगी थीं

  • त्योहारों में बच्चों को कंधे पर बिठा कर घूमने वाला श्याम अब चारपाई से बिना सहारे के उठ नहीं पाता
  • इस इकलौते बेटे के सीने में बूढ़े मां-बाप काे कंधा नहीं दे पाने का दर्द आज भी दबा है

बेबी चाैधरी के पति श्याम सुंदर चौधरी 26/11 के मुंबई आतंकी हमले में गंभीर रूप से घायल हुए थे। एक मजबूत कदकाठी का 32 साल का जवान हमेशा के लिए दिव्यांग बन गया। वह खुद खा नहीं पाते, नहा नहीं पाते, बाथरूम नहीं जा पाते। कभी जिनके कंधे पर पूरे घर की जिम्मेदारी थी, आज वह एक छोटे बच्चे की तरह सबकी जिम्मेदारी बन गए हैं। उनकी पत्नी बेबी कहती हैं, “काश! मुझे टाइम मशीन मिल जाए, तो मैं उस भयानक रात के आने के पहले ही घड़ी की सुई को रोक दूं।”

बेटी ने बदला डायपर तो रो पड़े श्याम
कभी पूरे घर की जिम्मेदारी उठाने वाला आज अपनी ही हालत पर शर्मिंदा हो जाता है। कई बार मेरी बेटी ने भी अपने पापा का डायपर बदला, तो श्याम रो पड़े। मेरी बेटी ने उनके आंसू पोछते हुए कहा, आपने भी तो बचपन में मेरा डायपर बदला है पापा, आज आप मेरे बच्चे हो। यह बातें मन को थोड़ी देर के लिए बहला देती हैं, लेकिन अपने पति की लाचारी मेरे लिए दुख का दरिया जैसा है।

पटाखों की अवाज सुन कर डरने लगे
बेबी बताती हैं, “उस रात बहुत जोर का धमाका हुआ था। घटनास्थल से मेरा घर 10 से 15 मिनट की दूरी पर है। वह धमाका इतना जोरदार था कि पूरा इलाका उसकी आवाज से हिल उठा था। आज भी दिवाली या दूसरे मौकों पर पटाखे छूटते हैं, तो श्याम कांप उठते हैं। इशारों से मुझे और बच्चे को बाहर जाने से मना करते हैं। उस रात कई लोग मारे गए। श्याम बच गए, लेकिन तब से लेकर आज तक मैं उनको बेबस देख-देखकर हर पल मरती हूं।

आखिरी बोल जो आज भी कानाें में गूंजते हैं
बेबी को याद है कि आखिरी बार उस काली रात को श्याम से बातचीत हुई थी, उनका दोस्त उन्हें हॉस्पिटल ले जा रहा था। श्याम ने फोन पर कहा था, ‘चिंता मत करना मैं जल्दी आ जाऊंगा।’ श्याम ने अपना वादा निभाया। वह लौट तो आए, लेकिन एक बेजान बुत की तरह। उस दिन के बाद उनकी दुनिया बेड तक ही सीमित रह गई। रोज डायपर बदलना, नहाना, कपड़े पहनाना, एक-एक निवाला मुंह में खिलाने जैसे काम बेबी का रूटीन बन गया। वह कहती हैं, “मैं आज तक हर रात यही सोचती हूं और खुद को कोसती हूं कि काश! उस रात मेरी आंख न लगी होती, मैं सोई न होती।”

‘हर रात खुद को कोसती हूं’
बेबी चाैधरी बताती हैं, ‘उस भयानक रात मेरे पति श्याम सुंदर चौधरी ने नाइट शिफ्ट के लिए अपने ऑफिस ‘पारले जी’ जाने की बात की, तो मैंने उनका हाथ पकड़कर कहा, ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही, आज आप बच्चों का ख्याल रखो, ड्यूटी पर मत जाओ। मेरे बगल में ही मेरा 8 साल का बेटा और 4 साल की बेटी सोए थे। मेरी बात सुनने के बाद श्याम ड्यूटी जाने का इरादा छोड़ पास ही लेट गए। न जाने कब मेरी आंख लग गई।’ पड़ोसन ने दरवाजा खटखटाया, तो आंख खुली। मैंने पूछा क्या हुआ, तो उसने कहा श्याम का पता करो, मैंने उसे ऑफिस की तरफ जाते देखा है। अभी बहुत तेज धमाके की आवाज आई है। मैंने बड़ी अचरज में कहा, वह तो अंदर लेटे हैं। मैं दौड़ कर अंदर गई। देखा श्याम बेड पर नहीं हैं। तब मेरे ससुर जी ने बताया कि श्याम का दोस्त आया था और उसके कहने पर वह ऑफिस निकल गया। किसे पता था, उस रात श्याम के साथ घर की सभी खुशियां चली जाएंगी।’

Post Author: Vijendra Upadhyay