भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे भगवान परशुराम

‘परशु’ प्रतीक है पराक्रम का। ‘राम’ पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। भगवान शिव के परम भक्त भगवान परशुराम का जन्म के वक्त नाम राम रखा गया था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें परशु प्रदान किया इसलिए उन्हें परशुराम कहा गया। भगवान परशुराम, पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथियों के गुरु थे। भगवान परशुराम को भगवान विष्णु तथा श्रीराम के समान शक्तिशाली माना जाता है।
भगवान परशुराम के अनेक नाम हैं। इन्हें रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी, जमदग्न्य नाम से भी जाना जाता है। भगवान परशुराम अमर हैं। भगवान शिव के परमभक्त भगवान परशुराम को न्याय का देवता माना जाता है। भगवान परशुराम ने न सिर्फ श्री राम की लीला बल्कि महाभारत का युद्ध भी देखा। कल्कि पुराण के अनुसार भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। अक्षय तृतीया पर व्रत रखने के साथ विधिवत पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान परशुराम की पूजा करने से भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा बनी रहती है।

परशुराम जन्मोत्सव का महत्व-
धार्मिक मान्यतानुसार अक्षय तृतीया यानी परशुराम जन्मोत्सव पर किए गए दान पुण्य का चार गुना अधिक फल मिलता है। भगवान परशुराम के पास अक्षय शक्ति थी। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती न मनाकर जन्मोत्सव मनाया जाएगा। पुराणों में 8 महापुरुषों का वर्णन है जिन्हें अजर-अमर माना जाता है, इनमें हनुमान जी, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, भगवान परशुराम, ऋषि मार्कण्डेय, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास और विभीषण शामिल है।

भगवान परशुराम से सबंधित और भी बाते –

1. विष्णु के आवेशावतार-
परशुराम के संबंध में कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। उनका जन्म भगवान श्रीराम के जन्म से पहले हुआ था। मान्यता है कि भगवान परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर में हुआ था।परशुराम जी के जन्म समय को सतयुग और त्रेता का संधिकाल माना जाता है। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम जी को न्याय का देवता भी माना जाता है।

2. भगवान शिव ने दिया था परशु अस्त्र-
भगवान परशुराम जी की माता का नाम रेणुका और पिता का नाम जमदग्नि ॠषि था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। परशुराम जी से बड़े तीन भाई थे। उन्होंने पिता की आज्ञा पर अपनी मां का वध कर दिया था। जिसके कारण उन्हें मातृ हत्या का पाप लगा, जो भगवान शिव की तपस्या करने के बाद दूर हुआ। भगवान शिव ने उन्हें मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया, जिसके कारण वे परशुराम कहलाए।

3. 21 बार किया क्षत्रियों का नाश-
भगवान परशुराम कभी अकारण क्रोध नहीं करते थे। जब सम्राट सहस्त्रार्जुन का अत्याचार व अनाचार अपनी चरम सीमा लांघ गया तब भगवान परशुराम ने उसे दंडित किया। भगवान परशुराम को जब अपनी मां से पता चला कि ऋषि-मुनियों के आश्रमों को नष्ट और अकारण उनका वध करने वाले राजा सहस्त्रार्जुन ने उनके आश्रम में आग लगा दी और कामधेनु छीन कर ले गया। तब उन्होंने पृथ्वी को दुष्ट क्षत्रियों से रहित करने का प्रण किया। इसके पश्चात् उन्होंने सहस्त्रार्जुन की अक्षौहिणी सेना व उसके सौ पुत्रों के साथ ही उसका भी वध कर दिया। भगवान परशुराम ने 21 बार घूम-घूमकर दुष्ट क्षत्रियों का विनाश किया।

4. भगवान कृष्ण को दिया था चक्र-
रामायण काल में सीता स्वयंवर में धनुष टूटने के पश्चात् परशुराम जी जब क्रोधित हुए और उनका लक्ष्मण से संवाद हुआ तो उसके बाद भगवान श्रीराम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र सौंपा था। वही सुदर्शन चक्र परशुराम जी ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण को वापस किया।

5. कर्ण को दिया था यह श्राप-
परशुराम जी ने कर्ण और पितामह भीष्म को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी दी थी। कर्ण ने भगवान परशुराम से झूठ बोलकर शिक्षा ग्रहण की थी। जब यह बात परशुराम जी को पता चली तो उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जिस विद्या को उसने झूठ बोलकर प्राप्त की है, वही विद्या युद्ध के समय वह भूल जाएगा और कोई भी अस्त्र या शस्त्र नहीं चला पाएगा। भगवान परशुराम का यही श्राप अंतत: कर्ण की मृत्यु का कारण भी बना।

6. गणपति को बनाया एकदंत-
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम के क्रोध से स्वयं गणेश जी भी नहीं बच पाये थे। ब्रह्रावैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार जब परशुराम जी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे तो भगवान गणेश जी उन्हें शिव से मुलाकात करने के लिए रोक दिया।

इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ दिया था। जिसके बाद भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।

7. चिंरजीवी: हर युग में रहे मौजूद-
रामायण और महाभारत दो युगों की पहचान हैं। रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर में हुआ था। पुराणों के अनुसार एक युग लाखों वर्षों का होता है। ऐसे में देखें तो भगवान परशुराम ने न सिर्फ श्री राम की लीला बल्कि महाभारत का युद्ध भी देखा।

8. हिमालय में फूलों की घाटी “मुनस्यारी” को बसाया-
हिमालय में फूलों की घाटी “मुनस्यारी” को बसाने का श्रेय भी परशुराम जी को है। हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ मानी जाने वाली श्रावणी कांवड़ यात्रा का शुभारंभ परशुराम जी ने सबसे पहले शिवजी को कांवड़ से जल चढ़ाकर किया था। सबसे महत्वपूर्ण “अंत्योदय” की बुनियाद परशुराम जी ने ही डाली थी। अपनी कर्मभूमि गोमांतक जिसे आज गोआ कहा जाता है, में परशुराम जी ने जनता को रोजगार से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई। एक ओर केरल, कच्छ, कोंकण और मलबार क्षेत्रों में जहां परशुराम ने समुद्र में डूबी खेती योग्य भूमि को फरसे के प्रहार से निकाल कर फसल युक्त किया, वहीं फरसे के उपयोग से वन-कानन का संवर्धन कर भूमि को कृषि योग्य बनाया। उपजाऊ भूमि तैयार करके धान की पैदावार शुरु कराईं। परशुराम ने इसी क्षेत्र में परशु का उपयोग सर्जनात्मक काम के लिए किया। इसी कारण भगवान परशुराम की सर्वाधिक प्रतिमा व मन्दिर इन्हीं क्षेत्रों में स्थापित है।

Post Author: Vijendra Upadhyay