आर्य राजा महाराजा सूरजमल जाट के जन्म दिवस 13 फरवरी पर नमन

आर्य राजा महाराजा सूरजमल जाट के जन्म दिवस 13 फरवरी पर नमन

“दिल्ली के बादशाह नवाब नजीबुद्दौला के दरबार में एक सुखपाल नाम का ब्राह्मण काम करता था। एक दिन उसकी लड़की अपने पिता को खाना देने महल में चली गयी। मुग़ल बादशाह उसके रूप पर मोहित हो गया। और ब्राह्मण से अपनी लड़की कि शादी उससे करने को कहा और बदले में उसको जागीरदार बनाने का लालच दिया और न मानने पर गर्दन कटवाने का डर दिखाया। भयभीत ब्राह्मण क्या करता ? मान गया और अपनी बेटी की शादी मुग़ल बादशाह से करने को तैयार हो गया । जब लड़की ने यह बात सुनी तो उसने शादी से इंकार कर दिया इससे क्रोधित होकर बादशाह ने लड़की को जिन्दा जलाने का आदेश दिया । मौलवियो ने बादशाह से कहा ऐसा तो यह मर जायेगी । आप इस को जेल में डालकर कष्ट दो और इस पर हरम में आने का दबाव डालो । बादशाह बात मान गया और लड़की को जेल में डाल दिया ।लड़की ने जेल कि जमादारनी से कहा कि क्या इस देश में कोई ऐसा राजा नहीं है जो हिन्दू लड़की कि लाज बचा सके । जमादारनी ने कहा ऐसा वीर तो सिर्फ एक ही है लोहागढ़ नरेश महाराजा सूरजमल जाट । बेटी तू एक पत्र लिख वो पत्र मैं तेरी माँ को दे दूंगी । लड़की के दुखो को देख वहाँ काम करने वाली जमादारनी ने लड़की की मदद की और लड़की ने महाराजा सूरजमल के नाम एक पत्र लिखा और उसकी माँ वो पत्र लेकर महाराजा सूरजमल से पास गयी ।उसकी कहानी सुन सूरजमल ने ब्रहामण की लड़की छुड़ाने के लिए अपने दूत वीरपाल गुर्जर को दिल्ली भेजा ।वहाँ दिल्ली दरबार में जब गूर्जर ने महाराजा सूरजमल जाट का पक्ष रखते हुए लड़की को छोड़ने की बात कही तो बादशाह ने कहा कि”सूरजमल जाट हमसे क्या ब्रहामणी छुडवाएगा , सूरजमल जाट को जाकर कहना कि अपनी जाटनी महारानी को भी हमारे पास लेकर आए ।”अपनी जाटनी महारानी के अपमान में यह शब्द सूनकर गुर्जर मुसलमानों के भरे दरबार में क्रोध से टूट पड़ा । तब बादशाह ने गुर्जर कि हत्या का दी और मरते मरते गूर्जर दूत ने कहा कि “वो पूत जाटनी का है , तेरी नानी याद दिला देगा”अपने दूत गूर्जर की हत्या की सूचना और महारानी के अपमान की बात जब भरतपुर में महाराजा सूरजमल ने सुनी तो गुर्रा के खेड़े हुए और बोले :-“चालो र जाट – हिला दो दिल्ली के पाट” और दिल्ली पर जाटों ने चढाई कर दी ।गोर गोर जाट चले अपनी लाड़ली सुसराल चले हाथो में तलवार लेक रमुगलो के बनने जमाई। सूरजमल जाट अपने साथ अपनी जाटनी महारानी को भी युद्ध में ले गया। भरतपुर के जाटों ने दिल्ली घेर ली और बादशाह के पास संदेश भिजवाया कि मैं अपनी जाटनी महारनी को साथ लेकर आया हूँ और अब देखता हूँ कि तू मुझसे जाटनी लेकर जाता है या नाक रगड़कर ब्रहामण की हिन्दू कन्या सम्मान सहित लौटाकर जाता है । 25 दिसंबर 1763 को दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ और महाराजा सूरजमल युद्ध जीत गए ।बादशाह नजीबुद्दौला ने महाराजा सूरजमल के पैर पकड़ लिये और बोला मैं तो आप की गाय हूँ। मुझे छोड़ दो महाराजा । बादशाह ने सम्मान सहित ब्राह्मण की लड़की को सूरजमल को लौटा दिया। बादशाह ने पैरों में पड़कर महाराजा सूरजमल से संधि की भीख मांगी और उन्हें उनके साथ दिल्ली चलने का न्योता दिया । युद्ध जीतकर महाराजा सूरजमल ने अपनी सेना को लौटा दिया और खुद जीत की खुशी में मग्न होकर मुस्लिम बादशाह पर ताबेदारी दिखाने के लिए कुछ सैनिकों को लेकर उनके साथ चल दिए। रास्ते में हिडन नदी के तट पर उन्हें धोखा देकर सूरजमल जी की हत्या कर दी। यह हिन्दू धर्म की जातिय एकता का अनुठा उदाहरण है कि एक ब्राह्मण की बेटी की लाज बचाने के लिए जाटों ने बलिदान दिया। जाट राजा सूरजमल अपने विश्वासपात्र गूर्जर को भेजते है । जाटनी के अपमान में गूर्जर वीरगति को प्राप्त हो गया। गूर्जर की मौत से जाट दिल्ली पर चढ़ाई कर देते है।

हिन्दू समाज में आज जो केवल जाति जाति की बात करते है। उन्हें हमारे इतिहास से सीख लेनी चाहिए।

राजा सूरजमल के राज्य की विशेषताएँ

एकमात्र सूरजमल महाराज ही ऐसे हिन्दू राजा हुए हैं जिनके भय से मुस्लिम बादशाहों ने अपने अपने राज में भी गौहत्या पर रोक लगा दी थी ( 1759 अवध के नवाब मीर बक्शी ने सूरजमल को पत्र लिखकर कहा था कि उनके राज में कभी कोई गौहत्या नहीं की जाएगी )

एकमात्र सूरजमल ही ऐसे हिन्दू शासक हुए है जिनकी मृत्यु पर उनके पास पूरे हिन्दुस्तान के राजा महाराओं बादशाहों नवाबों की बजाय ज्यादा आधुनिक और बड़ा शस्त्रागार था । एकमात्र सूरजमल ही ऐसे धनी हिन्दू राजा हुए हैं जिनकी मृत्यु के समय उनके राजकोष में संपूर्ण ऐशिया का सबसे ज्यादा धन था ।

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे हिन्दू राजा हुए है जिन्होंने मोतीडूंगरी की लड़ाई में सात राजाओं की सामुहिक 1 लाख की सेना को अपने 10 हजार सैनिकों से हरा दिया था ।

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे हिन्दू नरेश हूए है जिनकी भरतपुर रियायत पर न तो कभी मुगल जीत हासिल कर सके और न ही अंग्रेज ।

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे हिन्दू धर्मरक्षक हुए हैं जिनके बेटे ने अजान देने पर एक मौलवी की जीभ निकलवा दी थी।

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे राजा हुए है जिनके बेटे ने दिल्ली जीत ली थी ।

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे कुशल हिन्दू नेतृत्व करने वाले शासक हुए है कि युद्ध के मैदान में उनके साथ आम प्रजाजन भी अपने अपने हथियार लेकर युद्ध मे शामिल होते थे

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे हिन्दू शासक हुए है जिन्होंने मराठो से परस्पर द्वेषभाव होने पर भी द्वेव व जातिवाद से उठकर एक सच्चा हिन्दू बनकर उनका निस्वार्थ भाव से साथ दिया।

एकमात्र भरतपुर नरेश महाराजा सूरजमल ही ऐसे हिन्दू राजा हुए है जिसका मात्र कुटनीतिक पत्र पढ़ने से अब्दाली वापिस अफगानिस्तान लौट गया ।

एकमात्र महाराजा सूरजमल ही ऐसे हिन्दू राजा हुए हैं जिनको बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय ने “हिन्दू धर्मरक्षक” कहकर संबोधित किया ।

महाराजा सूरजमल उन कुछेक चुनिन्दा महायोद्धाओं में से ऐसा महायोद्धा हुए हैं जिनकी प्रतिमा दिल्ली बिड़ला मंदिर में मदनमोहन मालवीय ने लगवाई है।

 

Post Author: Vijendra Upadhyay

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