जल संरक्षण व पौधारोपण ऋषि परम्परा की देन -श्री दुबे
वैदिक रीति से दी देवी देवताओं को भावभीनी विदाई
देवास । यह हम सब भलीभांति जानते है कि भारत के किसी भी ऋषि मुनियों ने सीमेंट कांक्रीट के ढेर पर बैठकर तपस्या नही की, बल्कि उन्होंने वन स्थल व नदियों के किनारे आश्रम बना कर ही तपस्या की । ऐसा करके उन्होंने जीवन जीने के लिए जल तथा स्वस्थ रहने के लिए पर्यावरण का महत्व प्रतिपादित किया। उनकी यह व्यवस्था पौधरोपण और जल संरक्षण का महत्व उजागर करती है । आज हम सीमेंट कांक्रीट के जंजाल में फसकर अपने को असहाय सा महसूस कर रहे है । जल संरक्षण और पर्यावरण की सुरक्षा ऋषि परंपरा की ही देन है।
उक्त बात अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित क्षिप्रा में 24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ तथा प्रज्ञा पुराण कथा के अंतिम दिन मंगलवार को अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्तिकुंज हरिद्वार के प्रज्ञा पुराण मर्मज्ञ पं. श्यामबिहारी दुबे ने कही । वे यहाँ राष्ट्र जागरण के लिए पर्यावरण विषय पर बोल रहे थे। गायत्री शक्तिपीठ जनसंचार विभाग के विक्रमसिंह चौधरी एवं विकास चौहान ने बताया कि इसके पूर्व आज सुबह बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गायत्री महायज्ञ में शामिल होकर आहुतियां
प्रदान कर पूर्णाहुति की पश्चात सभी श्रद्धालुओं ने महाप्रसादी ( भण्डारे) का लाभ लिया ।
24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ
एवं प्रज्ञा पुराण कथा की पूर्णाहुति के बाद कनाडिय़ा गायत्री शक्तिपीठ के प्रमुख पं. शंकरलाल शर्मा, संजय शर्मा, सिद्धार्थ सराठे, संजय सोनेरे सहित स्थानीय गणमान्य नागरिको ने कथा मर्मज्ञ पं. श्यामबिहारी दुबे को अभिनन्दन पत्र भेंट कर सम्मानित किया।
पूरे कार्यक्रम में आयोजन समिति के साथ – साथ देवास गायत्री शक्तिपीठ की महिला मंडल का विशेष सहयोग रहा ।