संत की वाणी मनुष्य में पाप नहीं उपजने देती – अर्चना दीदी

देवास। बिना पुण्य के व्यक्ति सत्कर्म नहीं कर सकता, पुण्य से सत्संग की तथा सत्संग से विवेक की प्राप्ति होती है । गुरु चरित्र का निर्माण करता है, और संत आते हैं मनुष्य को सुधारने के लिए । जो संतों के सत्संग का अनुसरण करता है, उनके बताए मार्ग पर चलता है, वह पुण्यों को अर्जित करता है। वह अपने ही नहीं पूरे कुल के जीवन को भागवत प्रेम का अनुयायी बना देता है। संसार रूपी सर्प के जहर से बचना है तो सत्संग रूपी संजीवनी को सूंघना होगा वर्ना इस संसार का जहर मनुष्य जीवन को पुण्यहीन बना देगा। यह आध्यात्मिक विचार अर्चना दीदी ने योगेश्वरी महिला मण्डल आवास नगर द्वारा ए सेक्टर में आयोजित श्रीमद भागवत कथा में व्यक्त करते हुए कहा कि संत की वाणी मनुष्य में पाप उपजने नहीं देते और भगवान पापी को क्षमा नहीं करते । संत धोबी के समान होता है जो की वासना, लोभ, मोह, ईर्षा एवं कुविचाररूपी मैल को राम नाम रूपी साबुन से धोकर मनुष्य मन को निर्मल करता है।
आपने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लेकर गोकुल में आगमन किया तो नंद बाबा के घर आनंद की वर्षा होने लगी। समूचा गोकुल माता यशोदा और नंद बाबा को बधाई देने लगा। समूचे गोकुल के हर घर में आनंद का वातावरण निर्मित हुआ। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए कथा प्रसंग अनुसार भगवान शिव के द्वारा बाल कृष्ण रूपी त्रिलोकीनाथ के दर्शन का चित्रण, पूतना वध, कृष्ण बलराम के नामकरण संस्कार का आध्यात्मिक वर्णन किया गया। श्रीमद भागवत का पूजन महिला मण्डल की सदस्यों द्वारा किया गया । कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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