श्रुत पंचमी पर निकाली गई भव्य शोभायात्रा

देवास। दिगंबर जैन समाज द्वारा श्रुत पंचमी के पावन पर्व पर मुनि श्री 108 भूतबली सागर जी, मुनि श्री मोन सागर जी, मुनि श्री मुनि सागर जी, एवं मुनि श्री मुक्ति सागर जी महाराज ससंग के सानिध्य में भव्य शोभायात्रा एवं रथयात्रा सोमवार को दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति सदन नयापुरा से निकाली गई जो शहर के विभिन्न मार्गो से होती हुई पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर कवि कालिदास मार्ग पर दर्शन पश्चात दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति सदन नयापुरा पर समाप्त हुई । शोभायात्रा में षट्खंडागम के सभी शास्त्र धर्म प्रभावना रथ में रखकर समाज जन जयकारा लगाते हुए चल रहे थे, शोभायात्रा में दिगंबर जैन समाज के सभी महिलाएं पुरुष बालक एवं बालिकाओं सम्मिलित हुए एवम् शोभायात्रा का समापन दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति सदन नयापुरा पर हुआ । उसके पश्चात गुरुदेव मुनि श्री 108 भूतबली सागर जी महाराज ने समाज जनों को आशीर्वाद दिया एवं प्रति वर्ष इसी तरह श्रुत पंचमी पर धर्म प्रभावना के लिए शोभायात्रा निकालने का आशीर्वाद प्रदान किया।
उक्त जानकारी देते हुए कार्यक्रम प्रवक्ता निलेश छाबड़ा ने बताया कि मुनि श्री 108 भूतबली सागर जी महाराज का मंगल प्रवेश रविवार शाम 6 बजे स्थानीय भोपाल चौराहे से समाजजनों द्वारा किया किया गया एवं श्रुत पंचमी का पर्व गुरुदेव के सानिध्य में मनाया गया सोमवार को षट्खंडागम शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य डॉक्टर लाल चंद जैन परिवार को प्राप्त हुआ एवं गुरुदेव के सानिध्य में प्रतिदिन प्रात: 8 बजे प्रवचन, दोपहर 2.30 बजे रत्नत्रय क्लास, शाम 5.30 बजे गुरु भक्ति एवं रात्रि 8 बजे बाल ब्रह्मचारिणी मंजुला दीदी जी के प्रवचन होंगे।
श्रुत पंचमी पर गुरुदेव द्वारा दिए गए विशेष प्रवचन
दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति सदन नयापुरा पर मुनि श्री 108 भूतबलि सागर जी महाराज ने सोमवार को समाज जनों को समझाते हुए कहा कि आज श्रुत पंचमी का अनुपम दिवस है तीर्थंकरों के अनेक उत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन जिनवाणी मां का उत्सव वर्ष में एक ही बार आता है जिस दिन तीर्थंकर की दिव्य देशना खिरती है उसी दिन से तीर्थंकर शासन कहलाता है।
आज हम सब तीर्थंकर वर्धमान स्वामी के शासन में विराजमान हैं।उनके शासन को प्रवाहमान करने वाले अनेक आचार्य भगवंत हुए आचार्य धरसेन महाराज के पास श्रुत का अंश था। जैसे अपने वंश को देख कर पिता को लगता है कि उसकी वंशवेल कैसे चलेगी? उसी प्रकार आचार्य धरसेन स्वामी सोचते हैं कि मेरे साथ ही श्रुत समाप्त हो जाएगा।उसी समय ऐसी प्रथा थी की आचार्यों ने अपने शिष्य को सुना दिया शिष्य ने सुन लिया लिखने की कोई आवश्यकता महसूस ही नहीं कि।
जब आचार्य धरसेन स्वामी ने देखा कि हमारी आयु क्षीण हो रही है तब श्रुत की आराधना करते हुए उनके मन में विचार आया की कोई योग्य शिष्य हो तो उसे श्रुत प्रदान करें। वेणु नदी के तट पर आचार्य अर्हदवली स्वामी के सानिध्य में आयोजित यति सम्मेलन में आचार्य धरसेन स्वामी ने एक पत्र भेजा।उस पत्र की वाचना की गई। यथायोग्य नमोस्तु के बाद लिखा गया था अब मेरी आयु के निषेक बहुत अल्प है।मुझे कोई योग्य शिष्य चाहिए जो भगवान जिनेन्द्र की देशना लिपिबद्ध कर सकें। तब पुष्पदंत और भूत बली ने खड़े होकर कहा हे प्रभु यह अवसर हमें प्रदान करें ।आचार्य महाराज ने कहा तथास्तु !जाओ बेटा भगवान जिनेंद्र की वाणी और श्रुत की परंपरा को अविच्छिन्न रखो।
बंधुओं!धरसेन स्वामी अर्ध रात्रि में स्वप्न देखते हैं कि दो बैल आ रहे हैं नव वृषभों को देखकर अचार्य भगवान धरसेन स्वामी की निद्रा भंग हो गई और मुख से निकल पड़ा जयदु सुद देवता हे श्रुत देवता! तुम जयवंत हो।
प्रात: होते ही दोनों वीतरागी महाराज धरसेन स्वामी के चरणों में पहुंचे गए। युगल मुनिराजो ने तीन प्रदक्षिणा दी, नमोस्तु निवेदित कर अपने गुरु का भी नमोस्तु निवेदित किया।भगवान आज्ञा प्रदान करें।
आचार्य महाराज ने तीन दिन तक परीक्षा ली।तीसरे दिन उन्होंने उन युगल महाराजों से कहा हे वत्स ! तुम यह मन्त्र ले जाकर इस गिरनार की गुफा में सिद्ध करो।एक मंत्र में एक अक्षर अधिक था और एक मैं एक अक्षर न्यून। वह तो परीक्षा थी।उपवास का नियम लेकर युगल मुनिराज चले गये।ध्यान से मंत्र तो सिद्ध हो गये, लेकिन एक मुनिराज के सामने एक कानी देवी प्रकट हुई और दूसरे के सामने बड़े दांतों को दिखाने वाली देवी प्रगट हो गई।
यहां प्रतिभा और श्रद्धा की परीक्षा चल रही है।जिन शासन में पढ़ा है कि देव सर्वांग सुंदर होते हैं यह श्रद्धा थी? पर यह बेढंगी देवियां कैसे प्रगट हो गई? पुन: मंत्र का अवलोकन करने पर पाया कि एक अक्षर न्यून है, एवं एक अक्षर अधिक है।उन्होंने अपनी प्रतिभा से सुधार कर पुन: मंत्र सिद्धि किया तो सर्वांग सुंदर देवी प्रकट होकर बोली मुझे आज्ञा दो,आपने मेरा आवाहन क्यों किया ? वे निर्ग्रंथ मुनि निष्प्रहवृत्ति से कहने लगे मुझे आपसे कोई प्रयोजन नहीं है।हमने तो मात्र गुरु आज्ञा का पालन किया है।
अहो! ऐसे निस्प्रही संत के सामने साक्षात देवियाँ खड़ी है,फिर भी कह रहे है आप यहाँ से चले जाये।दोनों मुनिराज आचार्य धरसेन महाराज के चरणों में पहुंचे और कहां-प्रभु ! क्षमा करना,हमने आपकी अनुमति के बिना आपके मंत्रों में सुधार कर लिया है। गुरु प्रसन्न होकर बोले -बेटों!मेरी इच्छा पूरी हो गई।अब तुम माँ भारती का अध्ययन करो।धरसेन स्वामी ने दोनों मुनिराजो को सूत्र का अध्ययन कराया।वह दिन था आषाढ़ शुक्ल एकादशी का।
वन्धुओं आचार्य धरसेन स्वामी बहुत दूरदर्शी आचार्य थे उन्होने सोचा यदि ये मेरे साथ रहेंगे तो इन्हें राग हो जाएगा और मेरी सेवा में लग जाएंगे। जो सूत्र इनको दिए हैं, उन सूत्रों का लेखन नहीं कर पाएंगे।इसलिए आज्ञा दी बेटों!आप अन्यत्र चातुर्मास कर श्रुत का लेखन करो।अत: आचार्य भूतबली स्वामी अंकलेश्वर और पुष्पदंत स्वामी बनारस देश में पहुंच गए। वहां पहुंचकर आचार्य भूतवाली ने 20 सूत्र षट्खंडागम के लिखें।पुष्पदंत स्वामी ने शेष श्रूत्रों का लेखन किया तथा अपनी आयु को अल्प जानकर उन सूत्रों को पूर्ण करने हेतु अपने भांजे जिनपालित को दीक्षित कर भूतवली स्वामी के पास भेजा। भूत वाली स्वामी ने उन सूत्रों को पूर्ण कर जिस ग्रंथ की रचना की वह षटखण्ड़ागम है ग्रंथ के पूर्ण होने पर अंकलेश्वर के महाराजा ने नगरी को सजवाया और जिनवाणी को गजरत में विराजमान कर समारोह पूर्वक पूजन की ।आज वही श्रुतपंचमी का दिन है, इसी दिन से श्रुत -पंचमी पर्व प्रारंभ हुआ।
(श्रुत पंचमी के दिन हम लोग शास्त्रों की संभाल करते हैं ।परंतु झाड़ पोछकर या धूप दिखाकर आलमारी में रख देना ही उनकी संभाल नहीं है।शास्त्र के तत्व को अध्ययन-अध्यापन के द्वारा संसार के सामने लाना,यही शास्त्रों की संभाल है ।।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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