देवास। मानव अपने आपको एक शरीर मात्र समझता है यह उसका भौतिक ज्ञान है पर असल में वह शरीर को चलाने व जिंदा रखने वाली शक्ति अर्थात आत्मा है। इसका ज्ञान उसे समय के तत्वज्ञानी की कृपा से ही होता है। पर आत्मा के ज्ञान अर्थात अध्यात्म को जाने बिना मानव अपने शरीर के बाहर व अंदर के रख रखव में सामंजस्य नहीं बना पाता और वह बीमारियों से तो दुख पाता ही है दूसरी ओर मन की चंचलता के कारण वह अनेक सुख सुविधाओं के होते हुए भी अशांत व पीडि़त रहता है। आत्मा की ना समझी उसे आखिरकार एक दिन हारे हुए खिलाडी की तरह दुनिया से विदा करती है जो शरीर सहित सब कुछ खो चुका हो। ये आध्यात्मिक विचार श्री सतपालजी महाराज की शिष्या कौशलबाईजी ने मानव उत्थान सेवा समिति के बालाजी नगर स्थित आश्रम में साप्ताहिक सत्संग समारोह में कहे। आपने कहा कि सत्संग द्वारा संतों ने चेताया कि हमारे अंदर हर समय इंद्रियों के विषयों के विष इकट्ठे होते रहते हैं। जिनकी शुद्धि नहीं हो पाती हैै, शरीर में किसी मशीन की तरह अनेक पुर्जे गंदे कचरे की तरह ही मेल जमकर रोगो को पैदा करता है। संतश्री ने कहा कि शरीर के विषों का इलाज तो डॉक्टर से संभव है पर इंद्रियों के विष का इलाज तो अध्यात्म तत्वदर्शी की कृपा से ही हो सकता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से भरा हुआ मन अपने राग द्वेष से सबको अपना शत्रु मानने की भूल कर बैठा है। मन के कारण ही आज धरती पर भीषण युद्ध महाभारत हो रहा है और फिर भी समाज ने विनाश केबजाय विकास की मानव कल्याणकारी नीति को प्राथमिकता नहीं दी। मनुष्य के मन की भटकन जो उसका मोह या आसक्ति है वह उसे कांटों की तरह चुभती रहती है।
इस अवसर पर उपस्थित जयंति बहन ने कहा कि घी से भरे हुए कडाह के नीचे सौ कल्प तक अग्रि जलाने पर भी उसमें दिखाई देने वाली चंद्रमा की परछाई नहीं जलेगी। वृक्ष की खोह में रहने वाला पक्षी वृक्ष के कटने से नहीं मरेगा। ऐसा ही विचारहीन साधनों से मन पवित्र नहीं होगा। अंदर विषयों की कामनाएं भरी है, तन को धोकर पवित्र करते रहे, भला बाम्बी को पीटने से उसमें रहने वाला सर्प कैसे मरेगा। इसी बात को समझाते हुए तुलसीदासजी कहते है कि बिना सद्गुरू की कृपा के विमल विवेक नहीं होता और बिना विवेक के कोई भी भवसागर से पार नहीं हो सकता । समय के तत्वदर्शी सद्गुरू की प्रेरणा से जीव जागता है और ज्ञान से दीक्षित होकर ध्यान व भजन सुमिरन जब करता है तब उसके हृदय में प्रकाश हो जाता है तथा अज्ञान अंधकार समाप्त हो जाता है। कार्यक्रम की शुरूआत मेंं भजन गायक अंगूरसिंह चौहान, रामेश्वर कुमावत, अशोक शर्मा, मदन, गोकुल आदि ने गुरू महिमा ज्ञान वैराग्य भक्ति भाव से ओतप्रोत मधुर भजनों की प्रस्तुति दी। किरण कडवाल, मीना कुमावत, ग्यारसीबहन, मोटी मामी, नंदा बहन आदि ने साध्वियों का सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन गोपाल कडवाल ने किया तथा आभार सुरेश चावण्ड ने माना।