देवास। नारी एक रूप अनेक वाली कहावत को देवास की संध्या शर्मा ने सार्थक कर दिया। उन्होंने बहु के रूप में सासु माँ की अंत समय तक सेवा की, बेटी के रूप में अपने माता पिता के संस्कारों का अनुसरण करते हुए सेवा भाव के साथ समय समय पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया, जब वे सास बनी तो बहु को भी बेटी की तरह दुलारा और जब काल ने इस माँ का लाल और बहू का सुहाग छीना तो फिर माँ के रूप में बहु को बेटी बना शिक्षा दिलाई बेटी की तरह स्वतंत्रता दी, और योग्य वर देख कर पुन: विवाह का बहु को बेटी मान कन्यादान किया और पूरी उम्र अपनी छत्र छाया में रखने का वचन भी दिया।
जीवन के एक मात्र सहारे (बेटे) की अर्थी को कंधा देने वाले माता पिता के दुखों को बयान करने के लिए शब्द नहीं मिलते, जवानी में पति के आकस्मिक निधन के बाद पहाड़ जैसी जिंदगी को सहना एक स्त्री के लिए पल पल मरने के समान है। ऐसे में बहु के प्रति सास ससुर के उत्तरदायित्व की अनूठी मिसाल ने समाज में आदर्श स्थापित किया। देवास महात्मा गांधी मार्ग पर निवारत बहुप्रतिष्ठित शर्मा परिवार के कृष्णकांत शर्मा एवं उनकी धर्मपत्नी संध्या शर्मा के इकलोते पुत्र वैभव शर्मा की आकस्मिक मृत्यु 1 जनवरी 16 को हो गई। वैभव का विवाह सनावद (ओम्कारेश्वर)निवासी डॉ मनोहर शर्मा की पुत्री नेहा के साथ हुआ था। विवाह के पश्चात पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद नेहा ने अपने सास ससुर की सेवा बेटी बनकर की तो कृष्णकांत शर्मा एवं उनकी पत्नी संध्या शर्मा ने भी उसे अपनी बेटी मानकर उसके भविष्य को संवारने के लिये उसे उच्च शिक्षा दिलवाई, कम्प्यूटर में पीजीडीसीए का डिप्लोमा करवाया, बी एड कराया । शर्मा परिवार की परीक्षा अभी समाप्त नहीं हुुई थी कृष्णकांत शर्मा की माताजी को लकवा हो गया लेकिन शर्मा दम्पत्ति ने हिम्मत नहीं हारी और अंत समय तक उनकी सेवा की। विगत तीन वर्षो में इस परिवार ने एक के बाद एक मौत का तांडव सहा। नेहा की सास संध्या शर्मा के पिता मणिशंकर नागर भी दुनिया छोडकर स्वर्ग सिधार गए। ऐसे में कृष्णकांत एवं संध्या शर्मा ने नेहा को बेटी मानकर उसका भविष्य संवारने केे लिये उसके पुर्नविवाह का संकल्प लिया। उसके लिये योग्य वर की तलाश की और 28 मर्ई को अपने जीवन के एक मात्र सहारा नेहा का विवाह राजगढ जिले के ग्राम हिकमी निवासी अजय शर्मा के साथ संपन्न कराया। नेहा जब डोली में बैठाकर विदा हुई तो शर्मा दम्पत्ति बेटी के माता पिता की तरह रो पडे और कहा कि देवास तेरा मायका है और हम तेरे माता पिता हैं हमें भूलना मत, तुमने जैसे हमें संभाला है वैसे ही अपने परिवार को संभालना । इस हृदय विदारक विदाई को देखकर उपस्थित जनों की आंखे भर आई। कृष्णकांत शर्मा और संध्या शर्मा ने ममता, प्रेम, करूणा, त्याग और समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सारे ब्राह्मण समाज में आदर्श स्थापित किया। नेहा एवं अजय शर्मा ने विवाह के पश्चात देवास में ही रहकर नेहा के माता पिता बने कृष्णकांत एवं संध्या शर्मा की सेवा करने का संकल्प लिया। यह एक अनूठी मिसाल है।