हिन्दुत्व की पहचान है मस्तिष्क का तिलक – आचार्य शर्मा

श्रीमद भागवत कथा में मना श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, नन्हे कृष्ण जी हुई फूलो की वर्षा
देवास। श्री गंगेश्वर महादेव मंदिर समिति द्वारा भौंसले कालोनी में आयोजित श्रीमद भागवत कथा ज्ञान गंगा यज्ञ महोत्सव के अंतर्गत कथा के चतुर्थ दिवस श्रीकृष्ण जन्मोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। समिति के रोहन श्रीवास्तव ने बताया श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को आकर्षक रूप से सजाया गया। नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की, हाथी-घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की स्वरलहरियों के बीच कथा पाण्डाल गुंजायमान होकर कृष्णमय हो उठा। श्रीकृष्ण रूपी नन्हे बालक को टोकरी में लाया गया तब पंडाल में श्रीकृष्ण की जय जयकार होने लगी।
श्रद्धालुओं ने नृत्य कर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया। बाल गोपाल को माखन मिश्री का भोग लगाया। कृष्ण जी के भजनों की गूंज से वातावरण धर्ममय हो गया। व्यासपीठ से आचार्य हर्ष शर्मा ने कहा कि हमारे मस्तिष्क का तिलक हिन्दुत्व की पहचान है। मनु महाराज के दो पुत्र हुए प्रियवृत एवं उत्तानपाद। उत्तानपाद की दो पत्नियां थी सुरूचि और समिति। सुमिति के बेटे का नाम ध्रुव और सुरूचि के बेटे का नाम था उत्तम। उत्तानपाद सिंहासन पर बैठे हुए थे। धु्रव भी खेलते हुए राजमहल में पहुंच गए। उस समय उनकी अवस्था पांच वर्ष की थी। उत्तम राजा उत्तानपाद की गोदी में बैठा हुआ था। धु्रव जी भी राजा की गोदी में चढऩे का प्रयास करने लगे। सुरूचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने धु्रव को डांटते हुए कहा कि इस गोद में चढऩे का तेरा अधिकार नही। अगर गोद में चढऩा है तो पहले भगवान का भजन करके इस शरीर का त्याग कर और फिर मेरे गर्भ से जन्म लेकर मेरा पुत्र बन, तब तु इस गोद का अधिकारी होगा। माता के वचनो पर विश्वास करके पांच वर्ष का बालक धुु्रव वन की ओर चल पढ़ा। मार्ग में उसे देवर्षि नारद मिले। उन्होंने धु्रव को अनेक प्रकार से समझाकर घर लौट आने का प्रयास किया, किंतु वे उसे वापिस भेजने में असफल रहे। अंत में उन्होंने धु्रव को द्वादशाक्षर मंत्र (ऊं नमो भगवते वासुदेवाय) की दीक्षा देकर यमुना तट पर अवस्थित मधुवन में जाकर तप करने का निर्देश दिया। ध्रुव देवर्षि को प्रणाम करके तप करने का निर्देश दिया। धु्रव देवर्षि को प्रणाम करके मधुवन पहुंचे। उन्होने पहले महीने में कैथ तथा बेर, दूसरे महिने में सुखे पत्ते, तीसरे महीने में जल और चौथे महीने में केवल वायु ग्रहण कर तपस्या की। पांचवे महीने में उन्होंने एक चरण पर खड़े होकर आस अवरोध कर देने से देवताओ को आसावरोध स्वत: हो गया। उनके प्राण संकट में पड़ गए। देवताओ ने भगवान के पास जाकर उनसे धु्रव के तप से निवृत्त करने की प्रार्थना की। धु्रव भगवान के ध्यान में लीन थे। अचानक उनके हृदय की ज्योति अन्नर्विहित हो गई। धु्रव ने घबराकर अपनी आंखे खोली तो उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी भगवान स्वयं खड़े थे। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हे अविचल पद का वरदान दिया। व्यासपीठ की आरती मुख्य अतिथि लोकनिर्माण मंत्री सज्जनसिंह वर्मा, शहर अध्यक्ष मनोज राजानी, जाट समाज प्रदेशाध्यक्ष विलास पटेल, प्रदेश महासचिव इंद्रपालसिंह मलिक, शिवा चौधरी पह., संजय कहार, पं. राकेश पाण्डेय, पं. भावेश शर्मा, बंटी शर्मा, दिनेश मिश्रा, रोहित शर्मा सहित विकाससिंह जाट आदि ने की। अंत में माखन-मिश्री की प्रसादी का वितरण किया गया। कथा में आज गोवर्धन पर्वत की कथा का सचित्र प्रसंग होगा।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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