देवास 15 नवम्बर 2020/ सम्पूर्ण प्रदेश के साथ आज जिले में भी जन नायक स्व. श्री बिरसा मुण्डा की जयंती मनाई गई।
कलेक्टर कार्यालय देवास के सभागार में आयोजित हुए कार्यक्रम में स्व श्री बिरसा मुण्डा के चित्र पर जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग की सुप्रिया बिसेन द्वारा पुष्पांजलि अर्पित की गई। साथ ही सभी ने जन नायक बिरसा मुण्डा द्वारा आज़ादी के लिए किए गए साहसिक संघर्ष को याद किया और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया। इस अवसर पर आदिम जाति कल्याण विभाग के सभी अधिकारी/ कर्मचारी गण उपस्थित थे।
इस अवसर पर जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग श्रीमती बिसेन ने कहा कि हम सबको स्वर्गीय श्री बिरसा मुंडा जी से प्रेरणा लेनी चाहिए सामाजिक संगठनों को एक सूत्र में ढा़ल कर आजादी के लिए बिरसा मुंडा जी के योगदान को हम भुला नहीं सकते हैं ।उन्होंने विकास के लिए एकजुटता पर बल दिया है।
कार्यक्रम में जाति कल्याण विभाग के जिला संयोजक ने जन नायक बिरसा मुण्डा की जीवनी पर प्रकाश डाला।
जननायक बिरसा मुण्डा
(जन्म 15 नवम्बर, 1875- देहावसान 9 जून 1900)
सिंहभूम प्राचीन बिहार का वह भूभाग है जो वर्तमान में झारखंड के नाम से जाना जाता है, यहां की प्रमुख नगरी रांची 19 वी शताब्दी के अंतिम दशक में बिरसा विद्रोह की साक्षी रही है। बिरसा उच महानायक का नाम है जिसने मुण्डा जनजाति के विद्रोह का नेतृत्व किया था।
एक इष्ट के रूप में पूजित बिरसा मुण्डा पूरे मुण्डा समाज के साथ-साथ देश के जनजातीय समाज की अस्मिता बन गये। बिरसा ने पूरे जंगलो की प्राणवायु को संघर्ष की उर्जा से भर, सबके जीवन का आधार बना दिया था। दिनाँक 15 नवम्बर 1875 को जन्मे बिरसा मुण्डा के पिता सुघना मुण्डा तथा माता करनी मुण्डा खेतिहर मजदूर थे।
बिरसा बचपन से ही बडे़ प्रतिभाशाली थे। कुशाग्र बुद्धि के बिरसा का आरंभिक जीवन जंगलो में व्यतीत हुआ। उनकी योग्यता देख उनके शिक्षक ने बिरसा को जर्मन मिशनरी स्कूल में भर्ती करवा दिया। इसकी कीमत उन्हे धर्म परिवर्तन कर चुकानी पड़ी। यहां से मोहभंग होने के बाद बिरसा पढ़ाई छोड़ चाईबासा आ गये। देश में स्वाधीनता की आवाज तेज होने लगी थी। बिरसा मुण्डा पुनः अपनी मूल जनजातीय धार्मिक परंपरा में लौट आये।
अंग्रेजो ने अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा पहले जंगलो का स्वामित्व जनजातियों से छीना फिर बडे जमीनदारों ने जनजातियो की जमीन हड़पना शुरू की। इस अन्याय के विरूद्ध बिरसा मुण्डा ने ब्रिटिशों, क्रिष्चियन मिशनरियो, भूपतियों एवं महाजनोे के शोषण व अत्याचारो के खिलाफ छोटा नागपुर क्षेत्र में मुण्डा जनजाति के विद्रोह (1899-1900) का नेतृत्व किया।
3 मार्च, 1900 को अंग्रेजो ने बिरसा को गिरफ्तार कर रांची जेल में बंद कर दिया। जेल में शारीरिक प्रताड़ना झेलते हुए 9 जून, 1900 को बिरसा बीरगति को प्राप्त हो गये। बिरसा मरकर भी अमर है। छोटा नागपुर के जंगलो में आज भी बिरसा मुण्डा लोक गीतो में जीवित है।