स्थान -श्रीनगर (कश्मीर)
समय – 1965 का युद्ध
शत्रू तेज गति से आगे बढ रहे थे कश्मीर को शीघ्र सैन्य मदद चाहिए थी।
दिल्ली के सेना कार्यालय से श्रीनगर को संदेश प्राप्त हुआ कि किसी भी परिस्थिति में श्रीनगर के हवाई अड्डे पर शत्रु का कब्जा नहीं होना चाहिए।शत्रु नगर को जीत ले ,तो भी चलेगा,किन्तु हवाई अड्डा बचना चाहिए। हम हवाई जहाज से सेना के दस्ते भेज रहे है।
”हवाई अड्डे पर सर्वत्र हिम के ढेर लगे हैं।हवाई जहाज उतारना अत्यंत कठिन है।” श्रीनगर सें यह प्रतिउतर आया।
“मजदुर लगाकर तुरन्त हटाइए। चाहे कितनी भी मजदूरी देनी पड़े और इस काम के लिए कितने भी मजदूर लगाने पड़े,व्यवस्था कीजिए।”
‘मजदूर नही मिल रहे हैं। और ऐसे समय में सेना के प्रमुखों को संघ याद आया।
रात्रि के ग्यारह बजे थे। एक सैन्य जीप संघ- कार्यालय के आगे आकर रूकी। उसमें से एक अधिकारी उतरे।
कार्यालय में प्रमुख स्वंय सेवकों की बैठक चल रही थी। प्रेमनाथ डोगरा व अर्जुन जीं वही बैठे थें।
सेनाधिकारी ने गंभीर स्थिति का संदेश दिया। फिर उसने पूछा- “आप हवाई अड्डे पर लगे हिम के ढेर हटानें का कार्य कर सकेंगे क्या?”
अर्जुन जी ने कहा- “अवश्य!कितने व्यक्ति सहायता के लिए चाहिए।”
‘कम से कम डेढ़ सौ,जिससे तीन-चार घंटों में सारी बरफ हट जाये।”
अर्जुन जी ने कहा – “हम छः सौ स्वयंसेवक देते है।”
“इतनी रात्रि में आप इतने…..?” सैन्य अधिकारी ने आश्चर्य से कहा
“आप हमें ले जाने के लिए वाहनों की व्यवस्था कीजिए। ४५ मिनट में हम तैयार है ।”
संघ कि पद्धति का कमाल था कि तय समय पर सभी 600 स्वयंसेवक कार्यालय पर एकत्र होकर साथ साथ चले गये।
दिल्ली को संदेश भेजा गया-“बरफ हटाने का काम प्रारंम्भ हो गया है। हवाई जहाज कभी भी आने दें।”
“इतनी जल्दी मजदूर मिल गये क्या”
‘हाँ, पर वे मजदूर नही ,सभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हैं।’
रात्रि के डे़ढ बजे वे काम पर लग गये। २७अक्टुम्बर को प्रातः के समय प्रथम सिख रेजीमेन्ट के ३२९ सैनिक हवाई जहाज से श्रीनगर उतरे और उन्होने बड़े प्रेम से स्वंय सेवको को गले लगाया । फिर क्या था एक के बाद एक ऐसे आठ हवाई जहाज उतरे।
उन सभी में प्रयाप्त मात्रा में शस्त्रास्त्र थे। सभी स्वंयसेवको ने वे सारे शस्त्रास्त्र भी उतार कर ठिकाने पर रख दिये ।
हवाई अड्डा शत्रु के कब्जे में जाने से बच गया। जिसका सामरिक लाभ हमें प्राप्त हुआ।
हवाई पट्टी चौड़ी करने का कार्य भी तुरन्त करना था, इसलिए विश्राम किये बिना ही स्वंयसेवक काम में जुट गये।
संदर्भ पुस्तक :-
न फूल चढे न दीप जले।
।। *नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे*।।