भोपाल-एमपी कैडर के 2008 बैच के युवा आईएएस अफसर, कृष्ण गोपाल तिवारी जैसे-जैसे नौजवान होते गए, वैसे-वैसे उनकी आंखों की रोशनी जाती गई। स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही उनकी आंखों के सामने शत-प्रतिशत अंधेरा छा गया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद पूरी दक्षता के साथ प्रशासनिक कामकाज निपटाते आ रहे हैं। जोश, जज्बे और जुनून से उन्होंने जिंदगी की पहली जंग जीती है।
डीबी स्टार रिपोर्टर राधेश्याम दांगी ने उनकी पारिवारिक, सामाजिक और प्रशासनिक पृष्ठभूमि पर खास बातचीत की…
आपकी दिनचर्या कब और कैसे शुरू होती है?
-यह तो पद और पोस्टिंग पर निर्भर करता है। मैं 6 बजे उठता हूं और 9 बजे तक ऑफिस पहुुंच जाता हूं। ऑफिस इसलिए जल्दी जाता हूं, ताकि मैं अपने स्टाफ के लिए पहले से ही काम तैयार कर रख सकूंं। औरों की तुलना में मुझे अधिक मेहनत करना होती है और सतर्क भी ज्यादा रहना पड़ता है।
आपको खाने में क्या क्या पसंद है?
मैं वेजिटेरियन हूं और दाल-चावल, सब्जी-रोटी ही खाता हूं, लेकिन समोसा मुझे बहुत पसंद है।
छात्र जीवन का कोई अविस्मरणीय प्रसंग जो आपको याद होे?
मैं सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं। 12वीं तक आंखों की रोशनी नॉर्मल थी। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे रोशनी कम होती गई। मुझे एक हजार रुपए मिलते थे। राइटर को 300 रुपए देेता था। वह पढ़ता था और मैं सुनकर तैयारी करता था। इसके बाद मैंने टेप रिकॉर्डर की मदद ली। 48 इंटरव्यू में असफल रहा। यदि किसी कॉलेज में प्रोफेसर हो जाता तो आईएएस अधिकारी नहीं बन पाता।
आपकी पसंदीदा फिल्म?
ग्रामीण परिवेश का होने के कारण फिल्म आदि देखना सही नहीं माना जाता था। लेकिन मैंने जो फिल्में देखी, उनमें 3 इडियट मुझे अच्छी लगी, क्योंकि इसमें अच्छा संदेश दिया गया है।
आपका सबसे यादगार लम्हा?
16 मई, 2008 को मेरा आईएएस में चयन हुआ। इसके बाद 17 नवंबर, 2008 को मेरी नियुक्ति हुई।
विशेष रुचि वाला खेल क्या है?
मुझे तो सबसे अच्छा ट्रैकिंग करना पसंद है। बशर्ते मेरा पार्टनर अच्छा हो। मैंने मसूरी में ट्रेनिंग के दौरान 8 दिन में 4 किमी तक की ट्रैकिंग और घुड़सवारी की है।
पारिवारिक, सामाजिक और प्रशासनिक कार्यों में कैसे संतुलन बनाते हैं?
काम की अधिकता के कारण परिवार को सफर करना पड़ता है, लेकिन मैं इसे को-ऑपरेशन कहता हूं। परिवार का सहयोग होता है, इसलिए मैं इतना कर पा रहा हूं।
जब से प्रशासनिक सेवा में आए हैं, तब से किस तरह का संघर्ष करना पड़ा?
प्रोबेशन पीरियड में मेरी ट्रेनिंग अच्छी हुई तो कोई समस्या नहीं आई। मेरे पहले कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव थे, उन्हें मैंने कहा था कि सर मेरे ऊपर मेहरबानी मत करना। इसके बाद उन्होंने मुझसे हर काम करवाया, मैंने आंखें नहीं होने के बावजूद चोर पकड़े और अवैध वाहनों की धरपकड़ की।
क्या कभी खुद को असहज महसूस किया?
मैं बचपन से अब तक इतने बार अपमानित हो चुका हूं। मैं तो सोचता हूं कि यदि मैं बेरोजगार होता तो कितना अपमानित होता रहता।
स्वयं पर कभी फक्र हुआ?
ऐसे आदमी का काम कर देना, जिसका काम नहीं हो रहा हो। तब खुशी होती है, रिलेक्स हो जाता हूं और अच्छा लगता है।
युवाओं के लिए कोई संदेश?
कोई भी काम असंभव नहीं है। मेरी तो आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। न आंखे थीं। न गाइड करने वाला और न ही ठीक कोचिंग मिली। लेकिन आगे बढ़ सकते हैं। इसे ध्येय मानकर चलना चाहिए।
साभार भास्कर.कॉम