भोजशाला की संघर्ष गाथा

महाराजा भोज द्वारा सन् 1034 में  माँ सरस्वती मंदिर का निर्माण कर मंथल द्वारा बनाई स्फटिक से बनी माँ वाग्देवी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भोजशाला में की गई। भोजशाला पाँच हजार  विद्यार्थियों का आवासीय विद्यालय था, जहाँ हिन्दू समाज का मार्गदर्शन करने वाले विद्वान तैयार होते थे। 

अरब का  फकीर कमाल मौलाना सन् 1269 में मालवा क्षेत्र में आया और उसने 1305 में अलाउद्दीन खिलजी का मार्ग प्रशस्त किया।  सन् 1464 में मोहम्मद खिलजी ने  धारानगरी पर आक्रमण कर माँ सरस्वती मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर, माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर परिसर से बाहर फेंका।  सन् 1514 में मोहम्मद खिलजी ने भोजशाला को खंडित कर मस्जिद में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया।  16 वीं शताब्दी में दिलावरा खाँ गौरी ने माँ सरस्वती मंदिर में बने देवस्थलों  को खंडित कर, कमाल मौलाना का अवैध मकबरा बना दिया। कमाल मौलाना की मृत्यु अहमदाबाद में हुई थी, जहाँ उनकी मजार स्थित है। फिर भी भोजशाला में मजार होने का झुठा दावा किया जाता है।


सन् 1952 में महाराजा भोज स्मृति बसंतोत्सव समिति ने भोजशाला मुक्ति के प्रयास प्रारंभ किये। 
सन् 1961में पुरातत्ववेत्ता व इतिहासकार पद्म श्री डाॅ.वाकणकर ने लंदन संग्रहालय में प्रमाणित किया कि वहाँ रखी वाग्देवी की प्रतिमा ही भोजशाला धार में स्थापित प्रतिमा थी।  सन् 1970 के बाद  मंदिर परिसर में नमाज प्रारंभ हुई।  सन् 1992 बसंत पंचमी को साध्वी ऋतुम्भराजी द्वारा सरस्वती मंदिर भोजशाला में हनुमान चालीसा का आव्हान किया, तब अगले मंगलवार से सत्याग्रह प्रारंभ हुआ। सन् 2000 में घर-घर देवालय स्थापना के द्वारा धर्म जागरण किया गया। 
सन् 2003 में लाखों श्रद्धालुओं ने माँ वाग्देवी का पूजन किया। 

6 फरवरी 2003 को भोजशाला मुक्ति के लिए एक लाख से अधिक धर्मरक्षकों का संगम एवं संकल्प।  18-19 फरवरी 2003 को भोजशाला आंदोलन में तीन कार्यकर्ताओं का बलिदान हुआ और  1400 कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंधात्मक कार्यवाही हुई।  08 अप्रैल 2003 को 650 वर्षो बाद हिन्दूओं को दर्शन एवं पूजन का अधिकार प्राप्त हुआ।  सन् 2006 की बंसत पंचमी, शुक्रवार को  पहली बार दिन भर गर्भगृह में हवन पूजन किया गया। संगठित हिन्दू समाज के पराक्रम के कारण सन् 2013 में भोजशाला परिसर के बाहर नमाज हुई। 


2016 में सुर्योदय के साथ ही गृर्भ गृह में सरस्वती माता के तेल चित्र की  पूजा-स्थापना के साथ यज्ञ प्रारंभ हुआ।  संघर्ष, संगठन और पराक्रम के बल पर वर्ष में 52 दिन पूजन का अधिकार प्राप्त हुआ है।  750 वर्षों से चले रहे संघर्ष की पूर्णाहुति लंदन में रखी वाग्देवी सरस्वती की प्रतिमा की सरस्वती मंदिर भोजशाला में पुनर्स्थापना के साथ होगी। – साभार

Post Author: Vijendra Upadhyay