अश्विन शुक्ल दशमी की तिथि पर दशहरा मनाते हैं । दशहरे के पूर्व के नौ दिनों तक अर्थात नवरात्रि काल में दसों दिशाएं देवी मां की शक्ति से संचारित होती हैं । दशमी की तिथि पर ये दिशाएं देवी मां के नियंत्रण में आ जाती हैं अर्थात दिशाओं पर विजय प्राप्त होती है ।
विजयादशमी के दिन सरस्वती तत्त्व प्रथम सगुण अवस्था प्राप्त कर, तदुपरांत सुप्तावस्था में जाता है अर्थात अप्रकट अवस्था धारण करता है । इस कारण दशमी के दिन सरस्वती का पूजन एवं विसर्जन करते हैं । विजयादशमी साढे तीन मुहूर्तों में से एक है । इस दिन कोई भी कर्म शुभफलदायी होता है ।
त्रेतायुगमें प्रभु श्रीराम जी ने इस दिन रावण वध के लिए प्रस्थान किया था। रामचंद्र ने रावण पर विजयप्राप्ति के पश्चात इसी दिन उनका वध किया। ऐसी मान्यता है इस दिन को ‘विजयादशमी’का नाम प्राप्त हुआ ।
इस दिन सीमोल्लंघन, शमीपूजन, अपराजितापूजन एवं शस्त्रपूजन ये चार धार्मिक कृत्य किए जाते हैं ।
दशहरा व्यक्ति में क्षात्रभाव का संवर्धन करता है । शस्त्रों का पूजन क्षात्रतेज कार्यशील करने के प्रतीक स्वरूप किया जाता है । इस दिन शस्त्रपूजन कर देवताओं की मारक शक्तिका आवाहन किया जाता है । इस दिन राजा एवं सामंत-सरदार, अपने शस्त्रों-उपकरणों को स्वच्छ कर एवं पंक्ति में रखकर उनकी पूजा करते हैं । पूजन में रखे शस्त्रों द्वारा वायुमंडल में क्षात्रतेज का प्रक्षेपण होकर व्यक्ति का क्षात्रभाव जागृत होता है । इस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में नित्य उपयोग में लाई जानेवाली वस्तुओं का शस्त्र के रूप में पूजन करता है । किसान एवं कारीगर अपने उपकरणोें एवं शस्त्रों की पूजा करते हैं ।
(कुछ लोग यह शस्त्रपूजा नवमी पर भी करते हैं ।) लेखनी व पुस्तक, विद्यार्थियों के शस्त्र ही हैं, इसलिए विद्यार्थी उनका पूजन करते हैं । इस पूजन का उद्देश्य यही है कि उन विषय- वस्तुओं में ईश्वर का रूप देख पाना; अर्थात ईश्वर से एकरूप होने का प्रयत्न करना ।