(मोहन वर्मा देवास -98275 03366)
अगले बरस होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जहाँ कांग्रेस कमर कसकर सामने आते हुए जनता से जुड़े हरेक मुद्दे पर भाजपा को घेरकर मौर्चा खोल रही है वहीं भाजपा जमीनी स्तर पर अपने ही लोगो को एकजुट करने में असफल होती नजर आने लगी है. शहर में ऐसे वाकिये कई बार नजर आये.
अभी पिछले दिनों जहाँ कांग्रेस ने नोट्बंदी दिवस पर प्रदेश नेतृत्व के आव्हान पर शहर में भी काला दिवस मनाया और जबरजस्त तथा प्रभावी विरोध प्रदर्शन किया वहीं सत्तारूढ़ भाजपा अपनी ही नीतियों और नोट्बंदी के समर्थन को लेकर हुए कार्यक्रम और रैली में जमीन खोती नजर आई जहाँ काला धन विरोध दिवस पर निकाली रैली कार्यकर्ताओं के अभाव में चन्द कदमें के बाद ही बिखर कर एक औपचारिकता बन कर रह गई. बाद में कहा गया कि एन वक्त पर कार्यक्रम तय होने से व्यवस्थित रूप से सब तक सूचना नहीं पहुंच पाई .
दरअसल आजकल कांग्रेस आगामी चुनावों में सत्ता पर काबिज होने के लिए बार बार जनता के सामने आते हुए छोटे बड़े किसी भी मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहती और खोई हुई अपनी साख बनाने की कोशिश में लगी है.कुछ समय पहले मुक्तिधाम में शवदाह के मुद्दे को लेकर कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मनोज राजानी और महापौर सुभाष शर्मा की तकरार या बयानबाजी हुई थी जिसमे महापौर का कहना था कि कांग्रेसी तो रोज़ उठकर अगरबती लगाकर बैठते है कि आज कोई मुद्दा मिले.इसके बाद चायना सामग्री की बिक्री और उसपर रोक को लेकर एक बार फिर कांग्रेस मुखर हुई . कभी प्रदेश में क़ानून व्यवस्था तो कभी शहर में सीवरेज, निगम में भ्रष्टाचार, यानि कि हरेक मुद्दे पर विपक्ष की सक्रिय भूमिका में नजर आती कांग्रेस चुनाव के लिए कमर कस रही है हालाँकि ये बात दीगर है कि कांग्रेस में ही एकता के नाम पर शहर के बड़े नेता एक दूसरे की जड़े काटने में कोई कोताही नहीं बरत रहे.
इधर भाजपा भी अति आत्मविश्वास की शिकार नजर आने लगी है.बीते समय में ऐसी कई घटनाएँ, कार्यक्रम और ख़बरें सामने आई जो यह बताने को काफी है कि भाजपा की भी शहर में अब पहले की सी बात नही रही.संगठन में कई कई नियुक्तियां-प्रतिनियुक्तियां होने के बाद भी सक्रिय कार्यकर्ताओं का जोश किसी कार्यक्रम में नजर नहीं आ रहा.भाजपा के कुछ ही नेता और कार्यकर्त्ता प्रतिबद्ध तरीके से सक्रिय होकर हर जगह नजर आते है .भाजपा की अंदरुनी कलह की कहानी पिछले दिनों घोषित हुई भाजयुमो की कार्यकारिणी सूची से भी सामने आई थी जिसपर जमकर बवाल हुआ भी हुआ था और संगठन के प्रदेश अध्यक्ष ने अगले कुछ ही घंटों में सूची को निरस्त भी कर दिया था जिसके बाद अब तक भी नई कार्यकारिणी का गठन नही हो सका है
बात नगर निगम करें तो निगम का कचरा संग्रहण प्रोजेक्ट हो या सीवरेज घोटाला,ठेकेदारों द्वारा रकम डकार जाने का मामला हो या शहर में धड़ल्ले से हो रहे अतिक्रमण की बात, निगम की कार्यप्रणाली पर अपने ही पार्षदों का पुरजोर विरोध हो या सभापति महापौर की नूराकुश्ती, ऐसे कितने ही मुद्दे है जिनपर जनता असंतुष्ट नजर आ रही है.
आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर देवास सीट पर भी अंतहीन चर्चों का दौर जारी है जिसमे एकबार फिर बीते तीन दशकों में शहर को क्या मिला जैसे सवाल खड़े किये जा रहे है. पूर्व मंत्री और लोकप्रिय विधायक तुकोजीराव पवार के अवसान के बाद हुए चुनावों में श्रीमती गायत्री राजे चाहते न चाहते हुए भी चुनावी संग्राम में उतरीं और सहानुभूति लहर में चुनी गई. राजपरिवार के वारिस विक्रम सिंह पवार के राघोगढ़ प्रकरण में उलझने से उनकी दावेदारी नगण्य सी है तो फिर सवाल ये है कि किया भाजपा राजमहल से बाहर निकलेगी और यदी हाँ तो देवास से अब भाजपा की और से दावेदारी किसकी ?
अभी विधानसभा चुनावों में एक साल के लगभग बाकी है मगर सियासी बिछात पर गोटें बिछाने का काम जारी है. देवास सीट से भाजपा के कई कई लोग अन्दर ही अन्दर अपनी तेय्यारी में लगे है जिनमे खुल कर अभी कोई सामने नहीं आ रहा वहीं शहर में सक्रिय और मुखर भूमिका निभाती कांग्रेस से भी गुटबाजी के बावजूद देवास के लिए दावेदारों की कमी नहीं है.देखना भर इतना है ऊंट किस करवट बैठता है .