आस्था, विश्वास और पंच परिवर्तन का संगम महाकुंभ

– प्रयागराज से देश के घर-घर पहुंचा गंगा जल
विजेन्द्र उपाध्याय, देवास
सनातन में हर पर्व का अपना-अपना महत्व है। पूरे साल आने वाले त्योहारों का लोगों को बड़ी उत्सुकता से इंतजार रहता है। सनातन के हर पर्व से व्यक्ति के जीवन में भक्ति भाव के साथ सुकून भी प्राप्त होता है। साथ ही हर पर्व का महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से भी होता है। यही सनातन की पहचान है। वहीं कुंभ, महाकुंभ की बात करें तो इनमें भी ये सभी बातें समाहित हैं।
कुंभ का आयोजन सूर्य, चंद्रमा और गुरु (बृहस्पति) ग्रहों की स्थिति के आधार पर होता है और इसी आधार पर स्थान का निर्धारण भी किया जाता है। इस आयोजन की चार श्रेणियां हैं- कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ। कुंभ मेले का आयोजन चार स्थानों- प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में होता है। अर्धकुंभ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज और हरिद्वार में हर 6 साल में एक बार होता है। पूर्ण कुंभ सिर्फ प्रयागराज में हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। वहीं महाकुंभ एक दुर्लभ आयोजन है, जो 12 पूर्ण कुंभ के बाद यानी 144 साल बाद आता है। यह सिर्फ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होता है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती (पौराणिक) नदियों का पवित्र संगम होता है। इस वर्ष 144 सालों बाद महाकुंभ प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित हुआ, जहां पर आस्था, विश्वास के साथ पंच परिवर्तन का संगम भी दिखा।
पंच परिवर्तन की बात करें तो संघ ने शताब्दी वर्ष पर सामाजिक स्तर पर बदलाव के लिए कुछ निर्णय लिए। देश को उन्नत और श्रेष्ठ समाज के निर्माण की भावना को दृष्टिगत रखते हुए देश के समक्ष ‘पंच परिवर्तन’ की संकल्पना प्रस्तुत की गई। समाज में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए निर्धारित किए गए ये ‘पंच परिवर्तन’ हैं- सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, स्व का भाव, नागरिक कर्तव्यों का पालन और पर्यावरण संरक्षण।
महाकुंभ मेला एक ऐसा आयोजन है, जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है। जहां पर पूरे भारत के साधु-संतों, नागा साधुओं का आगमन हुआ। जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का अनुसरण करते हैं। संन्यासी, जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं, अध्यात्म के साधक और सनातन धर्म का पालन करने वाले होते हैं।
महाकुंभ में मां गंगा, मां यमुना और अदृश्य मां सरस्वती के पवित्र संगम में श्रद्धा और आस्था से ओत-प्रोत साधु-संतों, श्रद्धालुओं, कल्पवासियों, स्नानार्थियों और गृहस्थों का स्नान अब एक नए शिखर पर पहुंच गया है। कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित हुए। हाथी, घोड़े और रथों पर सैकड़ों अखाड़ों के पारंपरिक जुलूस निकले। वहीं ‘अमृत स्नान’ में चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं के रीति-रिवाज तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां हुईं, जिनके लिए करोड़ों तीर्थयात्री महाकुंभ मेले में शामिल हुए। महाकुंभ में स्नान का अपना एक महत्व है, जहां देशभर से अभी तक 66 करोड़ से अधिक लोगों ने डुबकी लगाई। वहां हर घाट पर लोगों ने डुबकी लगाकर पुण्य लाभ लिया। साथ ही हर जाति-समाज के लोगों ने एक साथ स्नान कर सामाजिक समरसता का परिचय दिया। देखा जाए तो भारत के हर सनातनी के घर मां गंगा का जल पहुंचा। साथ ही सभी श्रद्धालुओं ने अपने-अपने कर्तव्य का पालन कर शासन के नियमों का भी पालन किया। मेला स्थल पर हर सामग्री स्व का बोध करवाती रही।
डुबकी लगाने के लिए कई लोग परिवारजन के साथ आए। हमें कई ऐसे परिवार दिखे, जहां तीन-तीन पीढ़ी एक साथ डुबकी लगा रही थी, जो कि कुटुंब प्रबोधन को भी दर्शाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए देशभर से “एक थाली एक थैला” अभियान के अंतर्गत लाखों थाली और थैले पहुंचाने में मदद की गई, जो मेला स्थल के भंडारों, लंगरों पर उपलब्ध रहे। इससे करोड़ों टन प्लास्टिक का उपयोग होने से बचा जा सका। यह पर्यावरण संरक्षण का देश में सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत हुआ।
शासन-प्रशासन की बात करें तो महाकुंभ में उनकी व्यवस्था सराहनीय रही। चाहे मेला स्थल हो या घाट स्थल, हर जगह पुलिस कर्मी और सफाई कर्मी दिन-रात सेवा में लगे रहे। बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन सभी जगह पुलिस प्रशासन इतनी सतर्क रही कि आने-जाने वाली हर ट्रेन से सभी यात्रियों को सुरक्षित उतारा गया और जाने वाले यात्रियों को बैठाया गया। स्वच्छता की दृष्टि से भी देखा जाए तो कर्मचारी दिन-रात लगे रहे। पूरे मेला स्थल और घाटों पर लगातार सफाई होती रही। देखा जाए तो मेले में कार्य करने वाले हर व्यक्ति ने अपने कार्य को नैतिक दायित्व समझकर पूर्ण किया।

Post Author: Vijendra Upadhyay