देवास। हमने जिसे नहीं देखा यह उतना सत्य है जितना हमने अपने परदादाओं को नहीं देखा। हम हुए हैं इसका मतलब वे थे। इसी तरह मनुष्य का पूर्व जन्म होता है। पूर्व जन्म कर्मो के प्रतिफल से मिलता है। इस बात का अनुसंधान विश्व के वैज्ञानिकों ने भी किया है। उसे सत्य माना जबकि हमारे शास्त्र हजारों वर्ष पहले लिख चुके हैं। जिस तरह हम भूमि में बीज बोते हैं जिसका फल हमें तीन से चार माह में मिलता है। बीज जितना अच्छा बोया होगा उतना ही अच्छा फल होगा । इस तरह इस जन्म में धर्म के मार्ग पर चलते हुए सतकर्म और पुण्यदान करेंगे उसका फल हमे इस जन्म में तो मिलेगा ही मगर अगले जन्म में कई गुना अधिक मिलता है। यह आध्यात्मिक विचार क्षिप्रा में दिलीप अग्रवाल परिवार द्वारा हो रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन भागवताचार्य श्री अनिरूद्धाचार्य जी महाराज ने व्यक्त करते हुए कहा कि यह संसार भोग भूमि है। इस जन्म में धन मिले तो धर्म करना,, पाप की सजा इस जन्म में नहीं मिली तो उस जन्म में जरूर मिलेगी।
कथा प्रसंग में महाभारत का वृतांत सुनाते हुए कहा कि कौरव सौ थे, पांडव पाँच थे फिर भी हार गये, कौरव के साथ महायोद्धा पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण जैसे अनेक योद्धा एवं विशाल सेना थी। पांडव के साथ सिर्फ कृष्ण थे। जीत कौरव की नहीं पांडव की हुई। जिसके साथ भगवान होते है वो हार नहीं सकते। मुख्यिा होने का भ्रम पालने वाला संसार का सबसे बड़ा मूर्ख व्यक्ति होता है। सबसे बडा मुखिया होता है समय। समय का चक्र जब चलता है तो परिवर्तन करता है। हम सब समय के अधीन थे और समय के अधीन है। मगर जब अच्छा समय मिले तो अच्छे कर्म करो। बुरे समय में सतकर्म ही साथ देते हैं। कुंती ने भगवान से दुख मांगा था क्योंकि जब भी दुख आया भगवान उनके साथ थे। जब अच्छा समय और सुख आाय तो भगवान उनसे दूर हो गये।
नारी के अपमान में चुप बैठे रहने वाला व्यक्ति पाप का भागीदारी होता है। द्रोपदी के चीरहरण के समय गंगापुत्र भीष्म चुप थे। परिणम बाणों की सैय्या मिली। जटायु ने नारी (सीताजी) अपमान के लिये रावण से युद्ध किया उनके पर कट गये तो उनसे मिलेने स्वयं प्रभु राम गये। जब भी नारी के सम्मान की बात आती है तो जटायु का नाम सम्मान से लिया जाता है। परीक्षित के जन्म की कथा में आपने बताया कि राजा परीक्षित की कुंडली में सर्पदंश से मृत्यु योग लिखा था किंतु अपनी सतगति के साथ कलयुग में श्रीमद भागवत कथा का उदाहरण बनकर करोडों मनुष्य मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करेंगे। जब जीव कुछ मांंगता नहीं तब परमात्मा उसको अपने स्वरूप का दान करते हैं। कथा में भगवान शिव और माता सती के विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि दक्ष प्रजापति और प्रसुती के यहां सोलह कन्या हुई थी। उनमें से तेरह उन्होंने धर्म को, एक अग्रि को,े एक पितृगण को और सोलहवीं सती श्री शंकर को दी। धर्म की तेरह पत्नियां कही ंगई है। श्रद्धा, दया, मैत्री, शांति, पूष्टि, क्रिया, उन्नति, वृद्धि, मेघा, स्मृति, तितिक्षा, धृति और मूर्ति। इन तेरह गुणों को जीवन में उतारने से धर्म जरूर फलता है। इन तेरह गुणों से परिपूर्ण होकर भक्ति करोगे तो भगवान मिलेंगे। भगवान शंकर के साथ सती के विवाह की सुंदर झांकी प्रस्तुत की गई। व्यासपीठ की पूजा दिलीप अग्रवाल, अनीता अग्रवाल, अंकित अग्रवाल, अनुष्का अग्रवाल, आकाश एवं राधिका ने की। कलश यात्रा के दौरान अपनी सेवा प्रदान करने वाली मधु शर्मा, उषा पौराणिक, संजू शर्मा, सावित्री चौधरी, शोभा नाईक, राजुबाई चौधरी का सम्मान किया गया। कथा में हजारों की संख्या में महिला पुरूषों ने कथा का लाभ लिया।