सुरेश जायसवाल, देवास
माघ पूर्णिमा 31 जनवरी
संत रैदास जयंती
एक बार महायोगी गोरखनाथ कबीर से मिलने गए। वहां कबीर की बेटी कमाली भी थी। वस्तुत: कमाली कबीर की बेटी नहीं थी।
वह किसी और की बेटी थी और कबीर ने उसे जीवनदान दिया था। तब से कमाली कबीर की बेटी की तरह रह रही थी। इसके बाद कबीर ने गोरखनाथ से संत रैदास के पास जाने को कहा। इस पर गोरखनाथ हिचकिचा गए। वे नाथ पंथ के सिद्ध और एक जूता बनाने वाले के पास जाएं।
लेकिन कबीर की जिद के आगे गोरखनाथ की एक नहीं चली। कबीर, कमाली और गोरखनाथ तीनों संत रैदास के पास पहुंचे। गोरखनाथ और कबीर को देखते ही संत रैदास भाव-विह्वल हो गए। उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।
वे सोचने लगे कि मेरे जैसे साधारण आदमी के घर कबीर और गोरखनाथ आए हैं। जिस समय तीनों पहुंचे, रैदास जूते सी रहे थे। तीनों को बैठने को कह कर रैदास दो गिलास पानी ले आए। एक उन्होंने कबीर को दिया और दूसरा गोरखनाथ को। कबीर ने तुरंत वह पानी पी लिया। लेकिन, गोरखनाथ ने पानी नहीं पिया।
उन्होंने सोचा कि बिना हाथ धोए रैदास ने चमड़े वाले हाथ से ही उन्हें पानी दे दिया। इस कारण उन्होंने कहा कि रास्ते में वे पानी पीकर आए हैं। तब रैदास ने वह पानी कमाली को दे दिया।
इस घटना को काफी दिन हो गए। गोरखनाथ जी अक्सर अदृश्य होकर आकाश मार्ग से विचरते थे। उनके पास इतनी सिद्धियां थीं कि उन्हें इस हालत में विचरते हुए देवता तक नहीं देख सकते थे।
उड़ते हुए वे मुल्तान के पास पहुंचे तो उन्हें नीचे से आवाज सुनाई पड़ी…आदेश गुरुजी। नाथ पंथ में इसी से एक-दूसरे को प्रणाम किया जाता है। गोरखनाथ जी को काफी आश्चर्य हुआ।
मैं अदृश्य होकर आसमान में विचर रहा हूं। ऐसा कौन है जो मुझे प्रणाम कर रहा है। उसने कैसे जाना कि मैं यहां हूं। उससे भी बढ़ कर आश्चर्य की बात यह है कि एक स्त्री ने मुझे पहचान लिया। गोरखनाथ जी नीचे आए। तब उस स्त्री ने कहा कि मैं तो रोज आपको प्रणाम करती थी लेकिन, आप बहुत बहुत ऊंचाई पर होते थे। आज आप कम ऊंचाई पर थे तो आपको मेरी आवाज सुनाई दे गई। गोरखनाथ ने कहा कि मुझे देखने की शक्ति तो देवताओं के पास भी नहीं है, फिर तुम मुझे कैसे देख लेती हो। तब उस स्त्री ने गोरखनाथ से कहा कि आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं कबीर की बेटी कमाली हूं। जब से मैंने संत रैदास के हाथ का पानी पिया है, तब से मुझे सारी अदृश्य चीजें दिखाई देती हैं।
भूत प्रेत, जलचर, नभचर सब कुछ दिखाई देते हैं ! मैं शादी के बाद यहां मुल्तान आ गई ! यह सब रैदास के पानी का ही कमाल है।
यह सुनकर गोरखनाथ जी तत्काल कबीर के पास भागे। वे कबीर को लेकर रैदास के पास गए। उनकी समझ में आ चुका था कि क्यों इतना आग्रह कर कबीर उन्हें रैदास के पास लेकर गए थे। रैदास ने दोनों को बिठा कर सत्संग की बातें शुरू कर दी। गोरखनाथ जी सोच रहे थे कि आज रैदास पानी के लिए पूछ ही नहीं रहे हैं।
यह सब भांप कर रैदास ने कहा, गोरखनाथ जी। वह पानी तो मुल्तान गया। तभी से यह कहावत मशहूर हो गई।
हर चीज का एक निश्चित मुहूर्त होता है। अब वह मुहूर्त फिर नहीं आएगा। अब मैं चाह कर भी आपको वह पानी नहीं पिला सकता। उस पानी को पीकर कमाली मुल्तान चली गई।