लीना के जैसी लड़कियाँ ही “समाज की सोच” को बदलती हैं

सुरेश जायसवाल, देवास
————————————-सफलता की कहानी

दिल्ली के खारीबावली में मेवों-मसालों की छोटी सी दुकान है “लीना सूर्यवंशी” की।

दूकान इतनी छोटी है कि इसमें बैठने की जगह नहीं है। लीना रोज़ 10 घंटे अपनी दुकान पर खड़ी होकर काम करती है, अगल बगल की बड़ी दुकानों के बीच अपना वजूद बनाए हुए है।

लीना अपने घर की ज़िम्मेदारी अकेले संभालती है। वो अपनी 2 बहनों की पढाई का खर्च भी उठा रही है। लीना की एक बहन CA का कोर्स कर रही है और दूसरी डायटीशियन का।

लीना कहती है कि , ‘ वो शादी भी उसी से करेगी, जो उसे दुकान चलाने दे, इतना वक़्त लगाया है इस बाज़ार में, इतना कुछ सीखा है, ऐसे ही घर कैसे बैठ जाउंगी।’

दुकान 365 दिन खुली रहती है, बचपन से ही पिता की मृत्यु के बाद लीना ने अपने परिवार को संभाला है। दुकान संभाले उसे 12 साल हो गए, लीना चाहती है कि जो दिन उसने देखे हैं, वो उसकी बहनें ना देखें।

लीना के जैसी लड़कियाँ ही महिलाओं को लेकर “समाज की सोच” को बदलती हैं। हम लीना के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं और आशा करते हैं कि वो ज़िन्दगी में वो सब कुछ हासिल करे, जिसे पाने के लिए वो दिन रात इतनी मेहनत करती है।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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