भविष्य में गणपति उत्सव मानने का स्वरूप स्थाई हो

विजेंद्र उपाध्याय, देवास

  • लाखो के चंदे का सही उपयोग कर आने वाली पीढ़ी को एक नई दिशा प्रदान की जाये
  • इस उत्सव को 1893 में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक द्वारा पुनर्जीवित किया गया था



देवास टाइम्स। सार्वजनिक रूप से गणपति उत्सव मनाने की शुरुआत अंग्रजो के काल मे 1893 में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक द्वारा पुनर्जीवित की गई थी। क्योकि मुगल काल के समय देश मे धार्मिक आयोजन मानना मुश्किल हो गया था। इस उत्सव को मनाने का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगो को जोड़ना था ताकि स्वराज के लिये लड़ा जा सके। इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आजादी की लड़ाई में एक अहम् भूमिका निभाई। तिलक जी द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी हम भारतीय पूरी धूमधाम से मना रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे।


लेकिन इस साल कोरोना महामारी के चलते सार्वजनिक रूप से किसी भी धार्मिक आयोजनों को लेकर सरकार ने सख्त रवैया अपनाया और किसी भी प्रकार के आयोजनों को अनुमति नही दी।


अब यह समय वह है जिसमे हम हमारे आयोजनों को नए तरीके से मनाने के लिये यह एक नई शुरुआत कर सकते है। वर्तमान की स्थिति को देख कर सभी समितियां को यह निणर्य लेना चाहिए कि इन सावर्जनिक आयोजनों को अब स्थाई रूप दिया जाए। हर मोहल्लों कालोनियो में एक मंदिर जरूर होता है। यदि नहीं है तो वहां नए मन्दिर की आधारशिला रखी जाए और स्थाई मंदिर बनाकर यह उत्सव वही गरिमामय तरीके से मनाये जाए। ताकि लाखो के चंदे का सही उपयोग हो और आने वाली पीढ़ी को एक नई दिशा प्रदान हो।

देवास के मैना श्री काम्प्लेक्स के गणेश जी एक उदाहरण है जिन्होंने वहां स्थाई मंदिर बना कर उस उत्सव को नई दिशा दी। ऐसे देश के कितने ही शहरों मे ऐसे उदाहरण होंगे जहां यह उत्सव मंदिरों में मनाए जाते है।

Post Author: Vijendra Upadhyay