संस्कारों की परम्परा विलुप्त होने से ही समाज और राष्ट्र में सभ्यता का हृास हुआ हैं – गायत्री परिवार

जन्म दिवस पर बच्चे, युवा और बुजुर्ग सब अपनी बुराई का त्याग करते हैं
गायत्री शक्तिपीठ पर जन्म दिवस संस्कार भारतीय पद्धति से मनाया जाता हैं

देवास। अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वावधान में देश की हर शाखा में सोलह संस्कार पूर्ण रीति से मनाये जाते है जिसमें हर संस्कार के बाद देव दक्षिणा के रूप में अपने जीवन की एक बुराई छोडऩे की कहते हैं ओर परिजन सहर्ष स्वीकार करते हैं।
गायत्री शक्तिपीठ एवं प्रज्ञापीठ संस्कारों की संस्कार शाला हैं। यहाँ सदैव भारतीय संस्कृति के अनुरूप नि:शुल्क सोलह संस्कार मनाये जाते है, जिसमें प्रमुख जन्म दिवस, मुंडन, विद्यारंभ, दीक्षा, यज्ञोपवीत, विवाह दिवस, पुंसवन संस्कार सहित अंतिम संस्कार भी अपनी संस्कृति के अनुसार मनाये हैं । गायत्री परिवार के प्रबंध ट्रस्टी महेश पंड्या एवं राजेंद्र पोरवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि गायत्री परिवार का मुख्य उदेश्य मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण। यह उद्देश्य बिना संस्कारों के संभव नही है इसलिए देश भर में गायत्री परिवार ने भारतीय संस्कारों की परंपरा को पुनर्जीवित किया है। युवा प्रकोष्ठ के केशव पटेल एवं धर्मेंद्र कुशवाह गायत्री शक्तिपीठ पर प्रतिदिन बाल संस्कार शाला भी चलाते हैं जिसमें बच्चों को मोबाइल न देखने पर इनाम दिया जाता हैं, माता पिता एवं बडों को प्रतिदिन चरण स्पर्श करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा हैं । बाल संस्कार शाला में बच्चो को संगीत, योग, कंप्यूटर एवं स्कूली शिक्षा भी अनिवार्य रूप से दी जाती हैं । युवा प्रकोष्ठ के समन्वयक प्रमोद निहाले ने आमजन से अपील की हैं कि वे अपने बच्चों एवं बडों के जन्मदिन गायत्री परिवार के माध्यम से जरूर मनाये ताकि घरों में अच्छे संस्कारों एवं संकल्पों का बीजारोपण हो सके और हमारी सभ्यता बनी रहें, नही तो पश्चिमी सभ्यता का अनुशरण करके हमारे बच्चे जन्म दिवस पर मोम बत्ती बुझाकर व चाकू से केक काटकर एक गलत परंपरा का शिकार बन जायेंगे।

Post Author: Vijendra Upadhyay

Leave a Reply