बाल दिवस – बच्चों को भयमुक्त वातावरण दें परिजन

मोहन वर्मा- देवास टाईम्स. कॉम

बाल दिवस – बच्चों को भयमुक्त वातावरण दें परिजन
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  आज बाल दिवस है और बच्चों के प्रति अपराधों को लेकर अख़बारों में 4 से 5 दिल दहला देने वाली ख़बरें पढ़ी, जिनमे जावरा में नवजात बेटी को पोलीथिन में बांध कर गटर में छोड़ने, खरगोन के बलवाडा में पिता द्वारा दुष्कर्म किये जाने से परेशान 12 वर्षीय बालिका के घर से भाग जाने, खंडवा में दो मानसिक रोगी बहनों से आश्रम संचालक द्वारा दुष्कर्म किये जाने और माँ की मौत के बाद सौतेले पिता द्वारा बेटी के साथ किये जा रहे दुष्कर्म, दादाजी द्वारा पोती के साथ गलत हरकतें करने की घटनाओं का सिलसिला थमता ही नजर नहीं आता .
    कौन का बाल दिवस, कैसा बाल दिवस जब कि जबकि छोटे बच्चे बाल मजदूरों के रूप में यहाँ वहाँ पिस रहे है, उनका शोषण हो रहा है जहाँ वो कहीं ईंट भट्टे ,स्लेट उद्योग,और ढाबों पर अलसुबह से लेकर देर रात तक न्यूनतम मजदूरी से भी कम पैसों पर काम कर रहे है और वहीं छोटी छोटी बच्चियां अपने ही परिवारों में दादा पिता जैसे उन रिश्तेदारों से छली जा रही है जिन्हें सबसे सबसे बड़ा भरोसा माना जाता है.
      घर से बाहर पढने या नौकरी करने के लिए यदि दूसरे शहरों में जाकर किसी रिश्तेदार के यहाँ जाकर रहती हैं तो वे मौके का फायदा उठाकर उसके साथ हरकत करने से नहीं चूकते. पत्नी की एक सहेली ने अपनी बेटी को दूसरे शहर में रिश्तेदार के यहाँ रहकर पढने भेजा तो उसने उसके साथ हरकत करना शुरू कर दिया . माँ के साथ उसने जब अपनी पीड़ा बताना चाहा तो माँ ने उसे डपट दिया.पत्नी को मौसी समझ उसने अपनी समस्या साझा की और उसकी मदद से वो वहाँ से निकल सकी.पर ऐसी सौभाग्यशाली बच्चियां कम होती है.
  आज जरूरत इस बात की है कि परिवार में दुर्भाग्य से यदि इस तरह का कोई हादसा हो जाता है तो पीडिता के साथ पूरी ताकत से बने रहे उसमे किसी तरह का भी  अपराध बोध पैदा न होने दें.  बच्चियों के साथ हो रहे यौन शोषण पर परिजन चौकन्ने हों और घर और बाहर उनके साथ क्या हो रहा है उसपर कडी नजर रखते हुए उन्हें अपनी बात खुलकर बोलने का अवसर दें , उनके साथ मित्रवत होकर उन्हें भी भले बुरे की समझ बताते हुए उन्हें सिर झुकाकर नहीं सिर उठाकर अपना बचपन जीने का अवसर दें.हम सभी को एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि तेजी से बढ़ते जा रहे जंगल राज में कोई भी हादसा किसी के साथ भी कभी भी हो सकता है इसलिए अपने परिवार में बच्चों को उनके बचपन के साथ निर्भय और उन्मुक्त बनाने में अपनी जिम्मेदारी निभाना हम सबका दायित्व है . .    

Post Author: Vijendra Upadhyay

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