आध्यात्मिक दृष्टि से जो सामना करे वह नहीं सहन करे वह है शूरवीर-शीलगुप्ता श्रीजी

देवास। परमात्म रूपी ईश्वर के जीवन में कई कष्ट एवं कष्ट देने वाले आए लेकिन प्रभु ने उनका सामना नहीं किया सहन किया। कष्ट देने वालों को धिक्कारा नहीं स्वीकारा और अंतत: सुधारा। हमें भी यदि परमात्म स्वरूप बनना है तो प्रभु प्रदत्त यही मार्ग अपनाना होगा। व्यवहारिक एवं सांसारिक दृष्टि से जो सहन करे उसे कायर कहा जाता है लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से जो सामना करे वह नहीं जो सहन करे वही शूरवीर होता है। ये उद्गार थे श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर पर चल रही चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में साध्वीजी शीलगुप्ता श्रीजी एवं शीलभद्रा श्रीजी के। आपने आगे कहा कि हमें कोई दुख दे तो हमारी अंतर आत्मा कहती है सहन करके क्षमा कर दे लेकिन बर्हिआत्मा कहती है इसका सामना करें। हमारा मन भी अधिकांशत: बर्हिआत्मा के साथ जुड़ जाता है। जबकि मन काया से अलग होता है। मन सोचने की शक्ति का नाम है। यह शरीर का अंग नहीं यह तो शरीर के अंदर बसी सोचने की शक्ति है। इसीलिये शास्त्र दृष्टि से मन,वचन, काया का उल्लेख होता है यही व्यवहारिक एवं प्रयोगात्मक दृष्टि से विचार, उच्चार और आचार है। मन ही विचार है, उसी के आधार पर उच्चार याने वचन एवं आचार याने काया कार्य करती है। यदि विचार शक्ति मन को बस में कर लेते है तो उच्चार एवं आचार स्वत: ही वश में आकर सुधर जाते हैं। यही मानव जीवन की सार्थकता का मुख्य उद्देश्य है।
आगामी कार्यक्रम
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि 25 दिवसीय इंद्रीय विजय तप के अंतर्गत चतुर्थ दिवस आयंबिल का आयोजन कैलाश कुमार इंदरमल भोमियाजी परिवार द्वारा किया जाएगा। 2 अगस्त गुरूवार का समग्र जैन समाज का नियम अपने 36 आचार्य भगवंतों के नाम स्मरण कर नमन, मनन और वंदन करें।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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