आँखें रूप देखती है जबकि आत्मा स्वरूप

रूप दर्शन धोखा देता है, स्वरूप दर्शन मुक्ति – शीलगुप्ता श्रीजी
देवास। प्रभु एवं गुरू के प्रति ममत्व भाव को बढ़ाकर हम सांसारिक वस्तु एवं व्यक्ति के प्रति अपने ममत्व को समाप्त कर सकते हैं। हमारे दुख के पीछे इंद्रियों का हाथ है जबकि सुख के पीछे आत्मा का। इंद्रियों ने हमें अनंत काल से दुख ही दिए हैं। मन वांंछित की प्राप्ति नहीं होने पर इंद्रियां जीवन को दुखी कर देती है। इसीलिए ज्ञानियों ने आत्मा को महान बताया है। आत्मा शाश्वत है और उसकी परितृप्ति जन्म जन्मांतर तक हमारे सुखी जीवन का आधार बन जाती है।
श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर पर चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला को उपदेशित करते हुए यह बात साध्वीजी शीलगुप्ता श्रीजी एवं शीलभद्रा श्रीजी ने कही। आपने कहा कि हमारी चक्षु इंद्रियां याने आंखों में आकर्षण ही समाया हुआ है। वह कुछ भी अच्छा देखकर उसकी ओर बिना विचारे आकर्षित हो जाती है। आंखे सिर्फ रंग और रूप को देखती, स्वरूप को नहीं देख पाती। व्यक्ति के रूप और स्वरूप में बड़ा अंतर होता है। रूप बाहर की आंखें देखती है लेकिन स्वरूप को देखने के लिये अंतर की आंखे याने आत्मा ही सर्वथा सक्षम है। उपरी रूप धोखा दे सकता है लेकिन सच्चे स्वरूप की पहचान कर लेते है तो कभी धोखा एवं दुख का सामना नहीं करना पड़ता। सच्चे स्वरूप का दर्शन हमें मुक्ति तक ले जाने में सहायक सिद्ध होता है। आंखों में जब तक आकर्षण ही होगा तब तक धोखा ही होगा। जिस दिन आकर्षण के स्थान पर करूणा एवं वात्सल्य का वास हो जाएगा उस दिन हमारी चाक्षु इंद्रियां पवित्र और पावन बन जाएगी। यही पावन चक्षु आत्मा को परमात्मा एवं महात्मा बनाने में सक्षम है।
आगामी कार्यक्रम
25 दिवसीय इंद्रिय विजय तप के अंतर्गत 11 वें दिवस 10 अगस्त शुक्रवार को एकासने का आयोजन सजनबाई बाबूलाल संतोष सेठिया परिवार द्वारा किया जाएगा। बियासने का आयोजन रेखा बहन तेजकुमार चर्तुमूथा परिवार द्वारा किया गया। 10 अगस्त शुक्रवार के लिये समस्त जैन समाज का नियम भोजन से पहले प्रभु, गुरू, साधर्मिक एवं जरूरतमंदों को याद करें एवं उन्हें कुछ समर्पित कर भोजन करें।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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