जीवों के प्रति सत्कार बढ़ाकर, सहकार बनकर, आत्मसाक्षात्कार करना ही मानवजीवन का उद्देश्य है-शीलगुप्ता श्रीजी

देवास। संसार में परस्पर पे्रेम बढ़ाने के लिये एक आत्मा से दूसरी आत्मा का साक्षात्कार होना अति आवश्यक है। आत्म साक्षात्कार करने के लिये सहकार याने सहायक बनने गुण जीवन में नितांत आवश्यक है। सच्चा सहकार तभी हो सकता है जब आप दूसरे के कार्य में सहायता कर उसके कार्य को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं। सहकार तभी हो सकता है जब दूसरे के प्रति सत्कार भाव होगा। प्रिय का सत्कार एवं अप्रिय का तिरस्कार हमारी इस सोच को परिवर्तित कर जीवन में जीवन में निष्पक्ष बनते हुए जीव मात्र के प्रति सत्कार भाव उत्पन्न करना ही मानव जीवन का प्रथम उद्देश्य है। इस प्रकार हम प्राणि मात्र का सत्कार करते हुए उनके सहकार बनकर उनकी आत्मा से साक्षात्कार करने की सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। श्री शंखेश्वर पाश्र्वनाथ मंदिर पर विशाल धर्मसभा को उपदेशित करते हुए यह बात साध्वीजी शीलगुप्ता श्रीजी एवं शीलभद्रा श्रीजी ने कही। आपने आगे कहा कि पुण्य से प्राप्त प्रभु एवं सद्गुरू के प्रति आस्था युक्त श्रद्धा नहीं बढ़ाई, माता पिता के प्रति सेवा भाव विकसित नहीं किया एवं जैन शासन की प्राप्ति होने के बाद इसकी सेवा, साधना एवं आराधना नहीं की तो आपका प्राप्त हुआ पुण्य शनै शनै समाप्त होता चला जाएगा। इसी के अनुसार पुण्य से प्राप्त ज्ञान की पुनरावृत्ति नहीं की एवं नित नए ज्ञान को पाने एवं सीखने की लालसा, उत्कंठा मन में नही जगी तो आपको मिला हुआ ज्ञान भी धीरे धीरे कम होता चला जाता है। हमें प्राप्त हुए ज्ञान की साधना एवं आराधना करके उसे सम्यकज्ञान में रूपांतरित करना ही ज्ञान की सच्ची उपासना है।
आगामी कार्यक्रम
प्रवक्ता विजय जैन ने बताया कि 25 दिवसीय इंद्रिय विजय तप के अंतर्गत 23 अगस्त को उपवास का आयोजन पूज्य साध्वीजी की निश्रा में ज्ञानार्जन केे द्वारा होगा। सर्व शांति हेतु तपस्वियों द्वारा 150 आयम्बिल तप किए गए। 23 एवं 24 अगस्त को तपस्वियों का बहुमान किया जाएगा। 23 अगस्त के लिये समग्र जैैन समाज का नियम साधर्मिक बंधुओं को प्रणाम एवं सभी बंधुओं को जय जिनेन्द्र कहकर अभिवादन करना है।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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