विष्णु वह सत्ता है जो सभी सत्ता में समान रूप से व्याप्त है :-आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत

देवास। आनंद मार्ग प्रचारक संघ देवास के भुक्ति प्रधान दीपसिंह तंवर ने बताया कि आनंद मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय विश्व स्तरीय धर्म महासम्मेलन 27 से 29 अक्टूबर 2023 तक अमझर कोलकाली जमालपुर में सम्पन्न हो रहा है। कार्यक्रम का शुभारंभ ब्रह्म मुहर्त गुरु सकाश एवं प्रातः 5.00 बजे पांचजन्य के साथ हुआ। उक्त धर्म महासम्मेलन में उज्जैन,देवास,इंदौर, भोपाल, सीहोर,होशंगाबाद आदि जिलों के साधकगण डॉ अशोक शर्मा, जगदीश मालवीय, बालकृष्ण माहेश्वरी, विकास दलवी,गोपाल सिंह कुशवाह आदि आध्यात्मिक लाभ लेने वहाँ पर उपस्थित है।
आनंद मार्ग प्रचारक संघ देवास के सचिव आचार्य शांतव्रतानन्द अवधूत ने बताया कि साधकों को संबोधित करते हुए पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने आनंद संभूति और नाम कीर्तन की प्रयोजन प्रयोजन सिद्धि पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अनन्या-ममता विष्णु ममता प्रेम-संगता इस अनन्य शब्द की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय दार्शनिको के अनुसार इस शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है पहला किसी अन्य की ओर न जाने वाला और दूसरा है जिसका संबंध किसी अन्य से ना हो इस प्रकार उक्त श्लोक के अंश का आश्रय बताते हुए उन्होंने कहा कि जब मन का किसी वस्तु या सत्ता के प्रति ममता न होकर जब अपनापन (ममता) विष्णु के प्रति हो जाता है इसे ही प्रेम कहते हैं । जब मन किसी अन्य वस्तु या सत्ता की ओर ना जाकर सिर्फ परम सत्ता की ओर जाता है तब इसे प्रेम कहते हैं। विष्णु शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि विष्णु वह सत्ता है जो सभी सत्ता में समान रूप से व्याप्त है। विष्णु का मतलब है संस्कृत में विष धातु है जिसका अर्थ है व्याप्त होना .जब ममता विष्णु के प्रति सोलह आना हो जाता है उसे प्रेम कहेंगे ,यही तो सर्वाेच्च उद्देश्य या प्राप्ती है। श्रीमद् भागवत गीता में भी कहा गया है जो मेरा नित्य प्रति निरंतर एक चित होकर अनन्य भाव से मेरा स्मरण करता है ऐसे योगी को मैं सुलभ सहज ढंग से प्राप्त हो जाता हूं। तात्पर्य है कि जब हम प्रेम पूर्ण हृदय से परम पुरुष को याद करते हैं तो मैं और तुम का संबंध एकात्मकता स्थापित करते हुए मैं- तुम और तुम -में भाव बोध की प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है , भक्त कहता है तुम्हारे मधुर आकर्षण में मैं सब कुछ भूल कर तुम मय हो गया हूं यही है अनन्य भक्ति का अंतरनिहित भाव, उन्होंने कहा कि के कीर्तन के समय श्रद्धा और प्रेम के साथ मन में परम पुरुष का दिव्य स्वरूप रहता है कि इस स्थिति में दो बातें रहती है कीर्तन के समय श्रद्धा और प्रेम तथा मन में रहता है उनका दिव्य स्वरूप। प्रवचन के माध्यम से, आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए कीर्तन का महत्त्व प्रदर्शित किया है। उन्होंने समझाया कि कीर्तन हमें एक साधना के रूप में सेवा करता है, जो हमें ईश्वरीय ज्ञान, आनंद और प्रेम का अनुभव कराता है। यह हमें मन की शांति, आत्मा की गहनता और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति करने में मदद करता है। यह एक स्पष्ट रूप से बताता है कि कीर्तन का महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह हमें ईश्वर के साथ एकीभाव में ले जाता है और हमें साक्षात्कार का अनुभव कराता है कीर्तन अपने आप में ही एक अनुभव है। यह एक स्थिर अवस्था है जो हमें अपने स्वभाव के साथ मेल कराती है और हमारे जीवन को पूर्णता और प्रकाश के द्वारा परिपूर्ण बनाती है। उक्त जानकारी संस्था के हेमेन्द्र निगम ने दी।

Post Author: Vijendra Upadhyay