- राणा सांगा ने 100 लड़ाइयां लड़ी, मुगलों को जीतने न दिया
परिचय- राणा सांगा (महाराणा संग्राम सिंह) (१२ अप्रैल १४८४ – ३० जनवरी १५२८) (राज 1509-1528) उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे।
महाराणा संग्राम सिंह, महाराणा कुंभा के बाद,सबसे प्रसिद्ध महाराजा थे। मेवाड़ में सबसे महत्वपूर्ण शासक। इन्होंने अपनी शक्ति के बल पर मेवाड़ साम्राज्य का विस्तार किया और उसके तहत राजपूताना के सभी राजाओं को संगठित किया। रायमल की मृत्यु के बाद, 1509 में, राणा सांगा मेवाड़ के महाराणा बन गए। सांगा ने अन्य राजपूत सरदारों के साथ सत्ता का आयोजन किया।
राणा सांगा ने मेवाड़ में 1509 से 1528 तक शासन किया, जो आज भारत के राजस्थान प्रदेश में स्थित है। राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एक किया। राणा सांगा सही मायनों में एक वीर योद्धा व शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुए।
इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली राजा थे।
फरवरी 1527 ई. में खानवा केे युद्ध से पूर्व बयाना केे युद्ध में राणा सांगा ने मुगल सम्राट बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीता। खानवा की लड़ाई में हसन खां मेवाती राणाजी के सेनापति थे। युद्ध में राणा सांगा केे कहने पर राजपूत राजाओं ने पाती पेेरवन परम्परा का निर्वाहन किया।
बयाना के युद्ध के पश्चात् 16 मार्च,1527 ई. में खानवा के मैैैदान में राणा सांगा घायल हो गए। ऐसी अवस्था में राणा सांगा जी को युद्ध मेदान से बाहर निकला गया ओर उनकी जगह उनके परम मित्र राज राणा अजजा झाला ने ली ।
उन्होंने अपनी वीरता से दूसरों को प्रेरित किया। इनके शासनकाल में मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक धर्मपरनय राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की रक्षा तथा उन्नति की।
राणा सांगा ईतने वीर थे कि। एक भुजा, एक आँख, एक टांग खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया, सुलतान मोहम्मद शाह माण्डु के युद्ध में हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है। खानवा की लड़ाई में राणाजी को लगभग ८० घाव लगे थे अतः राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष भी कहा जाता है। बाबर भी अपनी आत्मकथा मैं लिखता है कि “राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल पर अत्यधिक शक्तिशाली हो गया है। वास्तव में उसका राज्य चित्तौड़ में था। मांडू के सुल्तानों के राज्य के पतन के कारण उसने बहुत-से स्थानों पर अधिकार जमा लिया। उसका मुल्क 10 करोड़ की आमदनी का था, उसकी सेना में एक लाख सवार थे। उसके साथ 7 राव और 104 छोटे सरदार थे। उसके तीन उत्तराधिकारी भी यदि वैसे ही वीर और योग्य होते मुगलों का राज्य हिंदुस्तान में जमने न पाता”
प्रारंभिक जीवन
राणा रायमल के चार पुत्रों ( कुंवर पृथ्वीराज, जगमाल तथा राणा सांगा तथा सेसां तथा 2 पुत्रिया थी एक जीवित पुत्री आनन्दीबाई थी।) मेवाड़ के सिंहासन के लिए संघर्ष प्रारंभ हो जाता है। एक भविष्यकर्त्ता के अनुसार सांगा को मेवाड़ का शासक बताया जाता है ऐसी स्थिति में कुंवर पृथ्वीराज व जगमाल अपने भाई राणा सांगा को मौत के घाट उतारना चाहते थे परंतु सांगा किसी प्रकार यहाँ से बचकर अजमेर पलायन कर जाते हैं तब सन् 1509 में अजमेर के कर्मचन्द पंवार की सहायता से राणा सांगा को मेवाड़ राज्य प्राप्त हुुुआ।
सैन्य वृत्ति
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने अपने संस्मरणों में कहा है कि राणा सांगा हिंदुस्तान में सबसे शक्तिशाली शासक थे, जब उन्होंने इस पर आक्रमण किया, और कहा कि “उन्होंने अपनी वीरता और तलवार से अपने वर्तमान उच्च गौरव को प्राप्त किया।” 80 हज़ार घोड़े, उच्चतम श्रेणी के 7 राजा, 9 राव और 104 सरदारों व रावल, 500 युद्ध हाथियों के साथ युद्ध लडे। अपने चरम पर, संघ युद्ध के मैदान में 100,000 राजपूतों का बल जुटा सकते थे। मालवा, गुजरात और लोधी सल्तनत की संयुक्त सेनाओं को हराने के बाद मुसलमानों पर अपनी जीत के बाद, वह उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा बन गए। कहा जाता है कि सांगा ने 100 लड़ाइयां लड़ी थीं और विभिन्न संघर्षों में उनकी आँख तथा हाथ और पैर खो गए थे।