सुरेश जायसवाल, देवास
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मंगल पांडे द्वारा गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से खोलने से मना करने वाली विद्रोह की चिंगारी बुझी नहीं ओर वह ओर बढ़ गयी। एक महीने बाद ही १० मई सन् १८५७ को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।
भारत के स्वाधीनता संग्राम में मेरठ की 10 मई, 1857 की घटना का बड़ा महत्व है। इस दिन गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से खोलने से मना करने वाले भारतीय सैनिकों को हथकड़ी-बेड़ियों में कसकर जेल में बंद कर दिया गया। जहां-जहां यह समाचार पहुंचा, वहां की देशभक्त जनता तथा भारतीय सैनिकों में आक्रोश फैल गया।
मेरठ पुलिस कोतवाली में उन दिनों धनसिंह गुर्जर कोतवाल थे। वे परम देशभक्त तथा गोभक्त थे। अपने संपर्क के गांवों में उन्होंने यह समाचार भेज दिया। उनकी योजनानुसार हजारों लोगों ने मेरठ आकर जेल पर धावा बोलकर उन सैनिकों को छुड़ा लिया। इसके बाद सबने दूसरी जेल पर हमला कर वहां के भी सब 804 बंदी छुड़ा लिये। इससे देशभक्तों का उत्साह बढ़ गया।
इसके बाद सबने अधिकारियों के घरों पर धावा बोलकर लगभग 25 अंग्रेजों को मार डाला। इनमें लेफ्टिनेंट रिचर्ड बेलेसली चेम्बर्स की पत्नी शारलैंट चेम्बर्स भी थी। रात तक पूरे मेरठ पर देशभक्तों का कब्जा हो गया। अगले दिन यह समाचार मेरठ के दूरस्थ गांवों तक पहुंच गया। हर स्थान पर देशभक्तों ने सड़कों पर आकर अंग्रेजों का विरोध किया; पर ग्राम धौलाना (जिला हापुड़, उ.प्र.) में यह चिंगारी ज्वाला बन गयी।
इस क्षेत्र में मेवाड़ से आकर बसे राजपूतों का बाहुल्य है। महाराणा प्रताप के वंशज होने के नाते वे सब विदेशी व विधर्मी अंग्रेजों के विरुद्ध थे। मेरठ का समाचार सुनते ही उनके धैर्य का बांध टूट गया। उन्होंने धौलाना के थाने में आग लगा दी। थानेदार मुबारक अली वहां से भाग गया। उसने रात जंगल में छिपकर बिताई तथा अगले दिन मेरठ जाकर अधिकारियों को सारा समाचार दिया।
मेरठ तब तक पुनः अंग्रेजों के कब्जे में आ चुका था। जिलाधिकारी ने सेना की एक बड़ी टुकड़ी यह कहकर धौलाना भेजी कि अधिकतम लोगों को फांसी देकर आतंक फैला दिया जाए, जिससे भविष्य में कोई राजद्रोह का साहस न करे। वह इन क्रांतिवीरों को मजा चखाना चाहता था।
थाने में आग लगाने वालों में अग्रणी रहे लोगों की सूची बनाई गई। यह सूची निम्न थी – सर्वश्री सुमेरसिंह, किड्ढासिंह, साहब सिंह, वजीर सिंह, दौलत सिंह, दुर्गासिंह, महाराज सिंह, दलेल सिंह, जीरा सिंह, चंदन सिंह, मक्खन सिंह, जिया सिंह, मसाइब सिंह तथा लाला झनकूमल सिंहल।
अंग्रेज अधिकारी ने देखा कि इनमें एक व्यक्ति वैश्य समाज का भी है। उसने श्री झनकूमल को कहा कि अंग्रेज तो व्यापारियों का बहुत सम्मान करते हैं, तुम इस चक्कर में कैसे आ गये ? इस पर श्री झनकूमल ने गर्वपूर्वक कहा कि यह देश मेरा है और मैं इसे विदेशी व विधर्मियों से मुक्त देखना चाहता हूं।
अंग्रेज अधिकारी ने बौखलाकर सभी क्रांतिवीरों को 29 दिसम्बर, 1857 को पीपल के पेड़ पर फांसी लगवा दी। इसके बाद गांव के 14 कुत्तों को मारकर हर शव के साथ एक कुत्ते को दफना दिया। यह इस बात का संकेत था कि भविष्य में राजद्रोह करने वाले की यही गति होगी।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि ऐसी धमकियों से बलिदान की यह अग्नि बुझने की बजाय और भड़क उठी और अंततः अंग्रेजों को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा। 1857 की क्रांति के शताब्दी वर्ष में 11 मई, 1957 को धौलाना में शहीद स्मारक का उद्घाटन भगतसिंह के सहयोगी पत्रकार रणवीर सिंह द्वारा किया गया। प्रतिवर्ष 29 दिसम्बर को हजारों लोग वहां एकत्र होकर उन क्रांतिवीरों को श्रद्धांजलि देते हैं।