मोहन वर्मा, देवास
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24 फरवरी की रात हार्टअटैक से निधन के बाद आज 28 फरवरी को भारतीय सिने जगत की मशहूर अदाकारा श्रीदेवी के अंतिम संस्कार के समय तक एक बार फिर हमारे टीवी चेनल्स लगातार सनसनी बिखेरते रहे मानो देश में दूसरा कोई मुद्दा बाकी ही नही रह गया. श्रीदेवी की मौत की खबर चौबीस घंटे और सबसे तेज़ खबरे पहुँचाने की जो हडबडी टीवी चेनल्स में दिखाई दी उसने एक संवेदनशील मामले पर लोगों को लगभग पका ही दिया.
देश की एक ख्यातनाम अभिनेत्री की आकस्मिक मौत पर और वो भी विदेश में,खबर बनती है और बननी भी चाहिए मगर मौत क्यों हुई, कैसे हुई से लेकर उनकी कास्मेटिक सर्जरी,उनकी निजी जिन्दगी, बोनी कपूर से उनके सम्बन्ध, उनकी बेटियों के केरियर और भविष्य से लेकर विशेषज्ञों की टीम द्वारा खानपान, व्यायाम, हार्टअटैक को लेकर बरती जाने वाली सावधानियां इस कदर परोसी गई कि सिवाय उफ्फ के कोई दूसरा शब्द नहीं सूझता.
कभी डाक्टर्स मिलकर उनकी मौत को कास्मेटिक सर्जरी से जोड़ते तो कोई मौत का कारण शराब को बताते हुए सेलिब्रिटी में शराबखोरी के नुक्सान गिना रहा था. किसी चेनल पर अभिनेत्री के शुभचिंतकों(?) की टोली मिलकर उनकी पारिवारिक ज़िन्दगी पर टीका टिप्पणी करने में लगी थी तो कोई चेनल इस बात पर बहस का मजमा जमाये हुए था कि चक्कर आकर वे पानी में गिरीं या गिरने से वो बेहोश हो गयी.
इस समूचे प्रकरण में भाजपा सांसद सुब्रह्ममणियम स्वामी तो और भी दूर की कौड़ी लाये जिन्होंने अभिनेत्री के अंडरवर्ल्ड के साथ संबंधों को जोड़ते हुए दोबारा पोस्ट मार्टम करवाने की मांग तक कर डाली.अंतिम यात्रा के समय भी दर्जनों कैमरों और संवाददाताओं के साथ कोई भी चेनल किसी से पीछे नहीं रहना चाहता था
इसके पूर्व भी अनेक अवसरों पर मीडिया का ये गैरजिम्मेदाराना चेहरा सामने आया जबकि चाहे रामरहीम वाला मामला हो या फिर आयुषी हत्याकांड, टीवी चेनल्स ने सनसनी ही परोसने का काम किया है.श्रीदेवी मामले में भी पिछले चार दिनों से मीडिया ने ख़बरों की जिस तरह जुगाली की है उससे निश्चित ही ये सवाल खड़ा होता है कि क्या मीडिया का ये रूप स्वीकार्य है?
आज देश में मुद्दों की कमी नहीं है और वर्तमान समय में देश में जिस तरह की नकारात्मकता बढ़ रही है, आम आदमी व्यवस्था से निराश परेशान और मायूस है, ना राजनीति और ना ही क़ानून व्यवस्था उसे भरोसा दे पा रहे है, विश्वसनीयता की जगह धोखाधड़ी का कदम कदम पर सामना करता असहाय नागरिक मूल आवशयकताओं के लिए संघर्षरत है ऐसे में प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया की जिम्मेदारी बहुत कुछ बढ़ जाती है.
आज भी आम आदमी को सकारात्मक मीडिया का बड़ा भरोसा है और चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक उसके दखल से निश्चित ही आम आदमी को अपने दुःख मुसीबत में मीडिया की ताकत से बहुत मदद मिलती है यदि पिछले चार दिनों से सनसनी परोसने और अनर्गल प्रलाप करने वाला यही मीडिया अपनी सकारात्मकता के साथ आम आदमी के पक्ष में खड़ा हो जाये तो निश्चित ही आम आदमी की ज़िन्दगी के निराशा के कोहरे में बदवाल की एक बयार दिखाई देगी.