लेनिन की मूर्ति के विध्वंस की घटना बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समांतर है

नागेश्वेर सिंह बघेल, देवास
…………………………………
जब मैंने, त्रिपुरा से आया वह चित्र जिसमे त्रिपुरा की जनता लेनिन की मूर्ति को उखाड़ फेंक रही है, देखा तो मेरे शरीर मे झुरझुरी से दौड़ गयी है। जनता द्वारा लेनिन की मूर्ति को तोड़ना यह स्पष्ट बता रहा है कि वहां वामपंथ और उसके प्रतीकों को लेकर किस हद तक आक्रोश और घृणा है।

यही नज़ारे 1990-1991 में भी दिखे थे लेकिन फर्क यह था की तब यह सोवियत रूस के टूटने के बाद वहां हुये थे। लेनिन रूसी था और एक विदेशी की भारत में मूर्ति क्यों लगाई गयी थी,इस पर मुझे कुछ नही कहना है क्योंकि विदेशियों की मूर्तियां अक्सर राष्ट्र उनको सम्मान देने के लिये लगाते है। त्रिपुरा में भी लेनिन की मूर्ति इसलिये लगाई गई थी क्योंकि आयातित वामपंथ का भगवान यही आयातित लेनिन है।

मैं लेनिन की मूर्ति के विध्वंस की घटना को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के समांतर मानता हूँ। बाबरी मस्जिद भी एक विदेशी धर्म और उसके शासको का स्थानीय धर्म और संस्कृति को कुचलने और उनको गुलाम बनाने का प्रतीक था, जिसने लोगो की आत्मा को छलनी कर रक्खा था। लोगो का जब आक्रोश न्यायालय और संविधान से आगे बढ़ गया तो लोगो ने उसे चंद घण्टो में उसे तोड़ कर सपाट कर दिया था।

यही त्रिपुरा में हुआ है। एक विदेशी विचारधारा वामपंथ और उसके भगवान की चौराहे में लगी आदमकद मूर्ति, वहां की दबी, भयभीत और असहाय जनता की आत्मा को छलनी कर रही थी। उनको जैसे ही दशकों के वामपंथी कुशासन से मुक्ति मिली उन्होंने अपना आक्रोश, उनके भगवान, प्रतीक लेनिन की मूर्ति का विध्वंस करके प्रगट किया है।

यह एक शुभ घटना है। शेष भारत को इससे प्रेरणा लेनी चाहिये। भविष्य में कल केरल से भी वामपंथी सरकार को जाना होगा और उसके साथ राजनैतिक रूप से यह विदेशी विचारधारा भारत की राजनीति में नेपथ्य में चली जायेगी। लेकिन हमें इन्हें राजनैतिक रूप से हरा कर सन्तुष्ट नही होना चाहिये क्योंकि इस विचारधारा ने समाज के हर क्षेत्र में जीते जागते लोगो के मस्तिष्क में लेनिन की मूर्ति स्थापित कर रक्खी है जिसने हमारे राष्ट्र भारत को पिछले आठ दशकों से तबाह कर रक्खा है।

भारत को यदि हमे और सुरक्षित रखना है तो हमे उन लोगो का विध्वंस करना होगा जिनके दिलो दिमाग मे लेनिन बैठा है। हमे इन लोगो को वैसे ही नष्ट करना होगा जैसे त्रिपुरा की जनता ने लेनिन की मूर्ति को किया है।

मैं हमेशा कहता रहता हूँ की यदि हमे अपने भारत को बचाना है तो हमे सबसे पहले विदेशी विचारधारा और उनके प्रतीकों को भारत मे प्रतिस्थापित करने वाले, अपनो का ही पहले मर्दन करना होगा।

Post Author: Vijendra Upadhyay

Leave a Reply