ओम जय जगदीश हरे के लेखक श्रद्धाराम फिल्लौरी

सुरेश जायसवाल, देवास
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ओम जय जगदीश हरे के लेखक श्रद्धाराम फिल्लौरी

भारत के उत्तरी भाग में किसी भी धार्मिक समारोह के अन्त में प्रायः ओम जय जगदीश हरे…आरती बोली जाती है। कई जगह इसके साथ ‘कहत शिवानन्द स्वामी’ या ‘कहत हरीहर स्वामी’ सुनकर लोग किन्हीं शिवानन्द या हरिहर स्वामी को इसका लेखक मान लेते हैं; पर सच यह है कि इसके लेखक पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी थे। आरती में आयी एक पंक्ति ‘श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ…’ में उनके नाम का उल्लेख होता है।

श्रद्धाराम जी का जन्म पंजाब में सतलुज नदी के किनारे बसे फिल्लौर नगर में 30 दिसम्बर, 1837 को पंडित जयदयालु जोशी एवं श्रीमती विष्णुदेवी के घर में हुआ था। उनके पिताजी कथावाचक थे। अतः बचपन से ही श्रद्धाराम जी को धार्मिक संस्कार मिले। उनका कण्ठ भी बहुत अच्छा था। भजन कीर्तन के समय वे जब मस्त होकर गाते थे, तो लोग झूमने लगते थे। 

आगे चलकर श्रद्धाराम जी ने जब स्वयं भजन आदि लिखने लगे, तो फिल्लौर के निवासी होने के कारण वे अपने नाम के आगे ‘फिल्लौरी’ लिखने लगे। श्रद्धाराम जी हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, संस्कृत, गुरुमुखी आदि अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इनमें उन्होंने धर्मिक पुस्तकें भी लिखीं। उन दिनों अंग्रेजी शासन का लाभ उठाकर मिशनरी संस्थाएँ पंजाब में लोगों का धर्म बदल रही थीं। ऐसे में श्रद्धाराम जी ने धर्म प्रचार के माध्यम से इनका सामना किया।

एक बार महाराजा रणधीर सिंह मिशनरियों के जाल में फँसकर धर्म बदलने को तैयार हो गये। जैसे ही श्रद्धाराम जी को यह पता लगा, वे तुरन्त वहाँ गये और महाराज से कई दिन तक बहस कर उनके विचार बदल दिये। 

श्रद्धाराम जी मुख्यतः कथावाचक थे। श्रेष्ठ वक्ता होने के कारण गीता, भागवत, रामायण, महाभारत आदि पर प्रवचन करते समय उनमें वर्णित युद्ध के प्रसंगों का वे बहुत जीवन्त वर्णन करते थे। श्रोताओं को लगता था कि वे प्रत्यक्ष युद्ध क्षेत्र में बैठे हैं; परन्तु इस दौरान वे लोगों को विदेशी और विधर्मी अंग्रेजों का विरोध करने के लिए भी प्रेरित करते रहते थे। 

एक बार युद्ध का प्रसंग सुनाते हुए वे 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की मार्मिक कहानी बताने लगे। कथा में कुछ सिपाही भी बैठे थे। उनकी शिकायत पर श्रद्धाराम जी को पकड़कर महाराज के किले में बन्द कर दिया गया। पर उन्होंने कोई सीधा अपराध तो किया नहीं था। फिर उनकी लोकप्रियता को देखते हुए पुलिस वाले उन्हें जेल भेजना भी नहीं चाहते थे। इसलिए उन पर क्षमा माँगने के लिए दबाव डाला गया; पर श्रद्धाराम जी इसके लिए तैयार नहीं हुए। झक मारकर प्रशासन को उन्हें छोड़ना पड़ा। 

इसके बाद श्रद्धाराम जी फिल्लौर छोड़कर पटियाला रियासत में आ गये। वहाँ कई दिन प्रतीक्षा करने के बाद उनकी भेंट महाराजा से हुई। महाराज उनकी विद्वत्ता से प्रभावित हुए। इस प्रकार उन्हें पटियाला में आश्रय मिल गया। अब उन्होंने फिर से अपना धर्म प्रचार का काम शुरू कर दिया।

पर पटियाला में वे लम्बे समय तक नहीं रह सके और तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। इस यात्रा के दौरान उन्होंने धर्मग्रन्थों का गहन अध्ययन किया और अनेक पुस्तकें भी लिखीं। ऐसे विद्वान कथावाचक पंडित श्रद्धाराम जी का केवल 44 वर्ष की अल्पायु में 24 जून 1881 को देहान्त हो गया। लेकिन ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती रचकर उन्होंने स्वयं को अमर कर लिया।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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