श्रावण मास का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

मनीषियों ने काल गणना के प्रसंग में संस्कृत के 12 मासों को वैज्ञानिकता की पृष्ठभूमि में निर्धारित किया है, जिसमें श्रावण मास चैत्रादि मासों के क्रम में पांचवें मास के क्रम में स्वीकार किया है। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से श्रवण नक्षत्र में अण् प्रत्यय के योग से श्रावण शब्द बनता है, जिसका अर्थ है श्रवण से संबंधित। ध्यातव्य है कि ज्योतिष शास्त्र में श्रवण नक्षत्र का स्वामी भगवान विष्णु को माना गया है। जिस महीने में श्रवण नक्षत्र में पूर्णिमा होती है, उसे ही श्रावण मास कहते हैं। कुछ विद्वानों के मत से सृष्टि का प्रारंभ जल से हुआ है और सावन मास जल के लिए जाना जाता है। अतः यह सृष्टि का पहला महीना है। वेद कहते हैं- ‘अप एव ससर्जादौ’ अर्थात विधाता ने सर्वप्रथम जल का निर्माण किया।
महाकवि कालिदास जी कहते हैं- या सृष्टिः स्रष्टुराद्या अर्थात ब्रह्मा की पहली सृष्टि जल ही है। सावन मास में सूर्य दक्षिणायन हो जाते हैं। कर्क राशि का सूर्य ही सावन मास है। इस महीने भगवान विष्णु जल का आश्रय लेकर क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं। जल वृष्टि अधिक होने से पृथ्वी में कणों के गर्भांकुर फूट पड़ते हैं। गर्मी का ताप शांत हो जाता है। हृदयहारी वायु बहने लगती है। सभी चराचर जड़ चेतन जीव-जंतु हर्षित हो जाते हैं। प्रकृति का वातावरण सुरम्य हो जाता है। संपूर्ण जीव-जगत उल्लास से भर जाता है। ऊष्णता से संतप्त प्राणियों को शरण देने वाला श्रावण मास का शुभागमन परम आह्लाद देने वाला हो जाता है। सरिताएं, नद, तालाब, नवीन जल से परिपूर्ण हो जाते हैं। बादल पृथ्वी के निकट आ जाते हैं।
मनोरम दृश्य उपस्थित हो जाता है, तब सभी जीवों का हृदय परमानंद से भर जाता है। मेघों की गर्जना, बिजली की चकाचौंध, दिन में सूर्य का दर्शन न होना, धाराप्रवाह वृष्टि सभी के मन को मोह लेती है। ऐसी परिस्थिति में श्रावण सब को गायन, नर्तन तथा झूला झूलने के लिए प्रेरित करने लगता है।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीरामचरितमानस के किष्किंधाकांड में लक्ष्मण को लक्ष्य करके भगवान श्रीराम से कहलाते हैं। राम कहते हैं- हे लक्ष्मण देखो, मोरों के झुंड बादलों को देखकर नाच रहे हैं, जैसे गृहस्थ में रहता हुआ वैरागी व्यक्ति विष्णु भक्तों को देखकर हर्षित हो जाता है। आकाश में बादल उमड़-घुमड़कर घोर गर्जना कर रहे हैं, बिजली की चमक बादलों में तनिक भी नहीं ठहरती, जैसे दुष्ट जनों की प्रीति स्थिर नहीं रहती।
बादल पृथ्वी के समीप आकर ऐसे बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान पुरुष नम्र हो जाते हैं। बादलों का विशुद्ध जल भूमि पर आकर तालाबों में वैसे भर रहा है, जैसे सद्गुण सज्जनों के पास जा रहे हों। पृथ्वी घास से परिपूर्ण हो गई है, जिससे रास्तों का पता नहीं चल रहा है। चारों दिशाओं में मेंढकों की ध्वनि ऐसी सुहावनी लग रही है। मानो बटुक वेद का पाठ कर रहे हों। वृक्षों में नए पल्लव आ गए हैं, जैसे विवेक मिलने से साधु का मन निर्मल हो जाता है।
वाल्मीकि रामायण में महाकवि कहते हैं कि श्रावणमास में यह आकाशरूपिणी तरुणी स्त्री सूर्य किरणों के द्वारा समुद्र के जल को पीकर नव मास पर्यंत अपने गर्भ में धारण करके सावन मास में जलरूपी रसायन को प्रकट कर रही है।

महर्षि वेद व्यास जी भी भागवत महापुराण में श्रावणमास की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि ज्येष्ठ-आषाढ़ मास की गर्मी से सूखी हुई पृथ्वी सावनमास के जल से सिंचित होती हुई अपनी हरीतिमा से वैसे ही शोभायमान हो रही है, जैसे तपस्या से दुर्बल हुआ साधक परिणाम प्राप्त हो जाने पर पुनः हृष्ट-पुष्ट हो जाता है। जैसे दयालु पुरुष प्रजा के कष्ट को देखकर स्वयं का जीवन अर्पित करने के लिए उद्यत हो जाता है, उसी तरह बादल तीव्र वायु की प्रेरणा से प्राणियों के कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन ही अर्पित कर रहा है।

श्रावण मास में अनेक प्रकार के व्रत, पर्व, त्योहार तथा अन्यान्य महोत्सव सम्पन्न होते हैं। कजली गीत, नागपंचमी, झूलागीत, हरियाली अमावस्या, हरितमाधव तृतीया, पवित्रा एवं कामदा एकादशी, रक्षाबंधन, श्रावणी उपाकर्म प्रभृति ये सभी श्रावणमास में धार्मिक कृत्य होते हैं।
श्रावणमास भगवान शिव को विशेष प्रिय है. अतः उनकी प्रसन्नता के लिए रुद्राभिषेक अहर्निश विना शिववास विचारे सर्वत्र किया जाता है। इस महीने में शिवभक्त शिव की प्रसन्नता के लिए कांवड़ यात्रा तथा सोमवार, प्रदोष, त्रयोदशी, मंगलागौरी व्रत मंगलवार के दिन करते हैं। संतकवि गोस्वामी तुलसीदास जी वर्षा ऋतु को भगवान की भक्ति वाली ऋतु मानते हुए कहते हैं कि उत्तम सेवक धान हैं और रामनाम के दो सुंदर अक्षर सावन और भादौ के महीने हैं।

Post Author: Vijendra Upadhyay