प्रभात संगीत में भाव, भाषा, छंद और सुर की प्रधानता होती है मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है, तो रेगिस्तान भी हरा हो जाता है -आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत

आजकल प्रभात संगीत एक नये घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा है

देवास। आनंद मार्ग प्रचारक संघ देवास के भुक्ति प्रधान दीपसिंह तंवर ने बताया कि 14 सितम्बर को आनंद मार्ग जागृति क्षिप्रा आश्रम पर देवास, इंदौर एवं उज्जैन के पी एल लबाना, विकास दलवी, अरविंद सुगंधी, दीपक व्यास आदि आनंदमार्गियो द्वारा प्रभात संगीत दिवस मनाया। इस अवसर पर संभागीय सचिव आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत ने कहा कि आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार कर मानव मन की सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था। इसी कड़ी में 14 सितंबर 1982 को झारखंड राज्य के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत बंधु हे निये चलो बांग्ला भाषा में देकर मानव मन को भक्ति उनमुख कर दिया। 8 वर्ष 1 महीना 7 दिन की छोटी सी अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया। आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गई। प्रभात संगीत के भाव ,भाषा, छंद, सूर एवं लय अद्वितीय और अतुलनीय है। संस्कृत बांग्ला, उर्दू , हिंदी, अंगिका ,मैथिली, मगही एवं अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है। संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का  स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए। प्रभात संगीत के छ स्तर है-विरह, मिलन, आवेदन, निवेदन, स्तुति, विसर्जन। संगीत में भाव, भाषा, छंद और सुर की प्रधानता होती है।  संगीत नंदन विज्ञान(एस्थेटिक साइंस) है तथा प्रभात संगीत इसी के अंतर्गत आता है। नंदन विज्ञान का अर्थ है दूसरों को आनंद देना एवं दूसरों से आनंद लेना।कीर्तन मोहन विज्ञान(सुप्रा एस्थेटिक साइंस) में आता है। मोहन विज्ञान अर्थात जो दूसरों को मोहता है या आकर्षित करता है। मनुष्य माया के अंधकार में सोया है। प्रभात संगीत से यह अंधकार हटता है तथा स्वर्णिम बिहान आता है।कठोर से कठोर व्यक्ति भी यदि सही ढंग से प्रभात संगीत गाये तो उसने भी उनमें भी अध्यात्मिक जागरण आ जाता है। नंदन विज्ञान से हम स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर बढ़ते हैं।इसका उपयोग समाज की प्रगति के लिए होना चाहिये।  इस पृथ्वी  पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में  लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत कर दिया। उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ  खड़ा हो जाता है, तो रेगिस्तान भी हरा हो जाता है। संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है। जितनी भी सूक्ष्म तथा दैवी अभिव्यक्तियां हैं, वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है। मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है। आजकल प्रभात संगीत एक नये घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा है ।उक्त जानकारी हेमेन्द्र निगम ने दी।

Post Author: Vijendra Upadhyay