मुम्बई से जुड़ी एक ख़बर आज पढ़ी। बाद में टीवी चैनल्स पर भी उससे जुड़ी एक-आध रिपोर्ट देखी। एक शख्स डेढ़ साल बाद जब अमेरिका से घर लौटा तो देखा कि उसका फ्लैट अंदर से बंद है। उसकी मां उस घर में अकेली रह रहीं थी। जब बार-बार घंटी बजाने पर भी दरवाज़ा नहीं खोला, तो दरवाज़ा तोड़कर वो अंदर घुसा। उसने देखा कि फ्लैट के अंदर उसकी मां की जगह उसका कंकाल पड़ा है। पिता की मौत चार साल पहले ही हो चुकी थी।
आख़िरी बार डेढ़ साल पहले उसने मां से बात की तो उन्होंने कहा था कि वो अकेले नहीं रह सकतीं। वो बहुत डिप्रेशन में है। वो वृद्धाश्रम चली जाएगी। बावजूद इसके बेटे पर इसका कोई असर नहीं हुआ। अप्रेल 2016 में फोन पर हुई उस आख़िरी बातचीत के बाद लड़के की कभी मां से बात नहीं हुई। तकरीबन डेढ़ साल बाद जब आज वो घर आया तो उसे मां की जगह उसका कंकाल मिला। पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतज़ार कर रही है और तभी वो बता पाएगी कि महिला ने आत्महत्या की या उसकी हत्या हुई। मैंने इस ख़बर को एक नहीं, कई बार पढ़ा और बहुत सी ऐसी बातें हैं जो मेरे दिमाग में कौंध रही हैं।
महिला ने जब डेढ़ साल पहले अपने बेटे को फोन पर कहा होगा कि बेटे मैं बहुत अकेली हूं। ये अकेलापन मुझे खाए जा रहा है। मेरा दम घुट रहा है और बेटे ने यहां-वहां की कुछ बात कर फोन रख दिया उसके बाद क्या हुआ होगा?
बेटे ने अगली बार मां को कॉल किया होगा। मां ने फोन नहीं उठाया, तो क्या बेटे को फिक्र नहीं हुई? क्या उसके मन में ये ख़्याल नहीं आया कि मां आख़िरी बात इतनी दुखी लग रही थी। अकेली भी है, उसे कुछ हो तो नहीं गया?
एक बार ऐसा नहीं लगा, मगर दो दिन बाद फिर फोन किया, तब भी उन्होंने नहीं उठाया या फोन नहीं लगा, उसके बाद भी वो इत्मीनान से कैसे रहा? क्या मुम्बई शहर में जिसका कि वो रहने वाला था, उसका एक भी ऐसा रिश्तेदार-दोस्त नहीं था जिसे वो कह सके कि पता करो क्या हुआ…मां से बात नहीं हो रही।
उस सोसाइटी में जहां वो महिला इतने सालों से रह रही थी, वहां भी किसी ने डेढ़ साल तक उसके गायब होने को नोट नहीं किया। बेटे और सोसाइटी के अलावा पूरे शहर मे, पूरी रिश्तेदारी में एक भी ऐसा इंसान नहीं था जिसने उस महिला से सम्पर्क करने की कोशिश की हो और बात न होने पर वो घबराया हो।
मैंने सुना है कि उत्तराखंड में कुछ साल पहले चारधाम यात्रा के दौरान आई बाढ़ में मारे गए लोगों के परिजन आज भी उन पहाड़ियों में अपने परिजनों के अवशेष ढूंढते हैं। उन्हें पता है कि वो ज़िंदा नहीं है। बस इस उम्मीद में वहां भटकते हैं कि शायद उनसे जुड़ी कोई निशानी मिल जाए। उनका कोई अवेशष मिल जाए और वो कायदे से उनका संस्कार कर पाएं। सिर्फ इसलिए ताकि वो अवशेष भी यूं ही कहीं लावारिस न पड़े रहें। इतने सालों बाद भी बहुत से ऐसे लोग सिर्फ इस उम्मीद में वहां भटक रहे हैं।
मगर यहां एक बुज़ुर्ग औरत अपने घर में डेढ़ साल पहले मर गई। उसे किसी को ढूंढना भी नहीं था। वो उसी पते पर थी जहां उसे होना थी मगर फिर भी डेढ़ साल तक उसके मरने का किसी को पता नहीं लगा। उसे किसी ने ढूंढा नहीं। बगल में रहने वाले पड़ोसियों तक ने नहीं। जिन्हें वो दिन में एक-आध बार दिख भी जाती होंगी। दरवाज़ा बंद देखकर किसी ने सोचा भी नहीं कि क्या हुआ…वो महिला कहां गईं!
जिस माँ ने अपने बेटे को कहा की में अकेली नही रह सकती, तो वो बेटा डेढ़ साल तक केसे सोया…वो समाज,वो रिश्तेदार, वो सोसाइटी वाले सब अपने काम में इतने व्यस्त थे की एक साल से महिला का गायब होना ही नही जान पाए …फ्लेट में कंकाल जरुर बुजुर्ग महिला का मिला हे मगर मोत शायद पुरे समाज की हुई हे …और इस समाज का हिस्सा होने पर में भी शर्मिदा हु ..