जोर से बोलो – सब मिल बोलो- हैप्पी हिंदी डे….

जोर से बोलो – सब मिल बोलो- हैप्पी हिंदी डे….

लो फिर 14 सितम्बर आ गया, सब मिल कर बोलो ,जोर से बोलो हैप्पी हिंदी डे …..
श्राद्ध पक्ष में जैसे पितरों का स्मरण होता है,जैसे फादर्स डे, मदर्स डे , वेलेंटाइन डे वैसे ही हिंदी डे ।
हिंदी के उत्थान के लिए हाँ भाई हाँ राष्ट्र भाषा हिंदी के उत्थान के लिए एक दिन तो बनता है । बड़े बड़े आयोजन होंगे । कान्वेंट शिक्षित वे सरकारी अफसर हिंदी दिवस पर बोलने के लिए बाबुओं से भाषण लिखवाएंगे जिनके अपने बच्चे कान्वेंट स्कूलों में पढ़ रहे है ।
आज के बच्चे न अखबार पढ़ते है और न ही कहानी,कविता । वे न तो मुंशी प्रेमचंद को जानते है और न ही निराला,धूमिल और महादेवी वर्मा को । हिंदी के अंकों के माने नही जानते ।
कहने की जरूरत नहीं कि हिंदी को ज़मीदोज़ करने में आज के कतिथ हिंदी अख़बार कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है । हिंदी अखबारों की खबरों के शीर्षक पूरी तरह अंग्रेजी भाषा के होते है । कारण कि हिंदी पत्रकारिता में प्रतिबद्ध पत्रकारों की जगह एमबीए युवाओं ने ले ली है जिनके लिए हिंदी भाषा की गरिमा की जगह खबरों को येनकेन प्रकारेण फटाफट परोसने की छूट मालिकों द्वारा मिली हुई है अखबारों से साहित्य परिशिष्ठ गायब हो रहे है । हिंदी अखबार बंद होने की कगार पर है ।
ऐसे में हिंदी बचाने, हिंदी का गुणगान करने की किसे पड़ी है
सवाल ये भी है कि एक षड़यंत्र के तहत हिंदी को दरकिनार किया जा रहा है ऐसे में एक दिन के रुदन से भला हिंदी का भला कैसे होगा ।

Post Author: Vijendra Upadhyay

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