मनीष भटनागर, देवास
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भगोरिया एक उत्सव है जो होली के सात दिन पहले से मनाया जाता है। यह मध्य प्रदेश के निमाड़ और मालवा अंचल (अलीराजपुर, धार, झाबुआ, खरगोन, सेंधवा, देवास आदि) के और गुजरात से सटे आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। होली के सात दिन पहले के समय मे ही अंचल क्षेत्र के हाट-बाजार भगोरिया मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है।
कहा जाता है कि भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूँढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हाँ समझी जाती है। इसके बाद लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से भाग जाता है और दोनों विवाह कर लेते हैं। इसी तरह यदि लड़का लड़की के गाल पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी लड़के के गाल पर गुलाबी रंग मल दे तो भी रिश्ता तय माना जाता है।
इस मेले की सबसे प्यारी बात ये है कि एक ही गाँव या डबरे के लड़के या लड़कियाँ एक जैसे ही रंग की वेशभूषा और साज-सज्जा में नजर आते है। भोलापन, चुलबुलापन चञ्चलता, शर्माना, अजनबियों को देख के नजर चुराना, पल्लू से चेहरा छुपाना, तिरछी नज़र से अपनी सखियों को इशारा करना, उनकी मासूमियत और अल्हड़ता मन को मोह जाती है।