निर्णय तो जज लेते है, लेकिन फैसला ऊपर वाला करता है- द्वितीय अपर सत्र जिला न्यायाधीश गंगाचरण दुबे
देवास। न्यायालय, कानून, अदालत, मुजरिम यह सब क्या होता है? साईनाथ मेमोरियल हायर सेकेण्डरी स्कूल के विद्यार्थियों की आज यह जिज्ञासा न्यायालय परिसर में शांत हुई। साक्षी रहा जिला विधि सेवा प्राधिकरण का सभागृह। कार्यक्रम में विद्यार्थियों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए एवं जानकारी देने के लिए जिला एवं सत्र न्यायाधीश माननीय डी.के. पालीवाल सा., अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश एवं सचिव लोकसेवा प्राधिकरण सम्मानीय समरोज खान सा., मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट कंचन सक्सेना सा. उपस्थित थे।
विद्यालय संचालक शकील अहमद कादरी ने बताया कि अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश श्री खान ने विद्यार्थियों को अनुशासन, धाराएं, लैंगिक अपराध, कानून प्रक्रिया के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी एवं समझाया कि कानून का जीवन में महत्व मनुष्य को हमेशा सुरक्षित रखता है। गलत कार्य से बचना आवश्यक है। विद्यार्थियों को हिंसा से कैसे बचना एवं अपराध को कैसे रोकना पर अपने जानकारी दी। श्री पालीवाल ने विद्यार्थियों को स्वतंत्र होकर सवाल करने के लिए कहा। विद्यालय की छात्रा असफिया जैनब ने सवाल किया कैस का अपने जीवन पर क्या असर पड़ता है। सम्मानीय न्यायाधीश श्री पालीवाल ने कहा कि कोई बुराई क्यों हुई इसकी जड़ तक जाया जाए तो कोई भी व्यक्ति उस गलती को नही दोहराता है। वहीं छात्र सौरभ पोरवाल ने सवाल किया कि अदालतों में फैसले आने में समय क्यो लग जाता है। जिला न्यायाधीश ने जवाब दिया कि कोई घटना कैसे घटी उसकी तह तक जाना एक दम संभव नही है। साक्ष्य जुटाने में समय लगता है। पहले सालों लग जाते थे। लेकिन अब इस भ्रांति को तोड़ते हुए न्याय शीघ्र मिल जाए, इसके लिए अदालते प्रयासरत है।
छात्रा नौशीन शेख ने पूछा की धारा 107 क्या है?
जज साहब ने कहा कि अमन एवं सदाचार बनाए रखने के लिए इस धारा का इस्तेमाल किया जाता है। योगेश चैहान ने पूछा कि क्यूं अपराधी एवं फरियादी को एक जगह पर खड़ा किया जाता है। जज साहब ने कहा कि यह गलत फहमी है ऐसा नही होता। यदि किसी लडकी के साथ कुछ अप्रत्यक्ष घटना घटित होती हैतो अपराधी को लडकी समक्ष तो लाया जाता है लेकिन उसे चारों तरफ से कोर्ट में परदे में रखा जाता है। तत्पश्चात विद्यार्थियों को न्यायालय का भ्रमण कराया गया एवं न्यायालय में किस प्रकार से कार्य किया जाता है इस पर सबसे पहले जिला सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में विद्यार्थियों को ले जाया गया एवं प्रत्यक्ष रूप से अपराधी, फरियादी के स्थान से अवगत कराया गया। बच्चों ने सवाल किया कि मृत्युदण्ड के फैसले में पैन की नीप क्यों तोड़ दी जाती है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समरोज खान सा. ने विद्यार्थियों को जानकारी दी कि पेन की नीप इसलिए तोड़ दी जाती है कि अगला कोई कार्य इतना दुखदायी न हो। जबकि वास्तविकता में मृत्युदण्ड रेयर ऑफ रेयरेस्ट होता है। इसके पश्चात विद्यार्थियों को द्वितीय अपर सत्र जिला न्यायाधीश सम्मानीय गंगाचरण दुबे सा. की अदालत का भ्रमण कराया गया। यहां छात्रा सिखा शर्मा ने सवाल किया कि वकील और जज हमेशा काला कोट ही क्यों पहनते है। जज साहब ने बताया कि इस कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति अपराधी या फरियादी के साथ संवेदनाओं में न बहे। महारानी एलीजाबेथ के जमाने में लाल कोट पहना जाता था। लेकिन किसी शोकसभा में वकील सीधे कोट से वहां चले गए तो लाल रंग वहां अजीब सा लगा। अत एव तभी से काला रंग कर दिया गया। क्योंकि काला रंग ऐसा है जिस पर किसी का रंग नही चड़ता। विद्यार्थियों ने जानकारी चाही कि आर्डर-आर्डर की हथोड़ी कैसी होती है। न्यायाधीश महोदय ने कालबेल बजाकर कहा कि हथोड़ा सिर्फ फिल्मों में पाया जाता है। आज के परिदृश्य में सिर्फ कालबेल बजाई जाती है। आपने कहा कि टाई गले में इसलिए लगाई जाती है कि वाणी पर संयम रहे। निर्णय तो जज लेते है, लेकिन फैसला ऊपर वाला करता है। इस अवसर पर विद्यालय के करीब 100 छात्र-छात्राओं एवं शिक्षक-शिक्षिकाओं ने अदालत का भ्रमण किया।